सादगी की मिसाल, गरीब का लाल बना जनता की आंखों का तारा

गणेश सिंह बिष्ट, सह सम्पादक

यह कहानी है उस नौजवान की जो एक ऐसे परिवार से संबंध रखता है जिसने अपने अतीत में बेहद आर्थिक तंगी सही है, दुःखों का पहाड़ देखा है, और कठिन दिनों का सामना करते हुए संघर्षपूर्ण जीवन बिताया है। आज उस नौजवान की कड़ी मेहनत, सच्ची लगन और उसके समाजिक सरोकार ने उसे समाज के अंतिम व्यक्ति की श्रेणी से उठाकर प्रथम व्यक्ति के रूप में एक जनप्रतिनिधि का दर्जा दे दिया है। कहा जाता है कि सपने तो हर कोई देखता है, किंतु जो खुली आंखों से सपना देखता है, उसी का सपना पूरा हो पाता है। यहां पर हम बात करते हैं उत्तराखण्ड राज्य में जनपद नैनीताल के विकासखण्ड धारी के अन्तर्गत एक सुदूरवर्ती गांव मझेड़ा में निवास करने वाले दीप सिंह बिष्ट (दीपक) की, जिन्होंने इस त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों में 11-चौखुटा क्षेत्र से जिला पंचायत सदस्य के रूप में ऐतिहासिक जीत हासिल की है। चुनाव में किसी एक की जीत तो निश्चित होती ही है और चुनाव जीतना कोई नई बात नहीं है, किंतु इस बार यह जीत कुछ अलग थी, जिसने चुनावी मैदान में राजनैतिक अनुभव रखने वाले कई बड़े-बड़े दिग्गजों को पीछे कर दिया, जो स्वयं प्रत्याशियों की उम्मीदों से भी परे था।

दीपक के अतीत में झांका जाए तो उनके परिवार की एक मार्मिक कहानी सामने आती है। दीपक ने बचपन में ही अपनी मां को खो दिया था। जंगल में घास काटने के दौरान पहाड़ी से गिरकर दुर्घटनावश उनकी मां का स्वर्गवास हो गया था। पिता मानसिक तनाव और शारीरिक कमजोरी के कारण ठीक से आजीविकोपार्जन नहीं कर पाते थे। बच्चों की जिम्मेदारी बूढ़ी दादी के कंधो पर थी। अल्प आय होने के कारण परिवार की गुजर-बसर बमुश्किल हो पाती थी और परिवार को कई कमियों से जूझना पड़ता था। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, भोजन, कपड़ा, आदि की जिम्मेदारी एक तरह से दादी ही निभा रही थी, जिसमें यदाकदा पिता का भी सहयोग मिलता रहता था। दीपक की मां दीपक के साथ अन्य दो (02) नन्हीं बच्चियों को छोड़कर चली गई थी। बिना मां के बच्चों (तीनों भाई-बहनों) का सफर कितना मुश्किलों भरा रहा होगा, इस बात का अंदाजा वही व्यक्ति लगा सकता है जिसने बचपन में ही अपनी मां को खो दिया हो। दीपक के बड़े होते-होते कुछ समय बाद एक दिन दादी भी चल बसी और घर फिर से सूना हो गया। भाई-बहनों में बड़ा होने के नाते घर की जिम्मेदारी दीपक के कंधों पर आ चुकी थी। स्वयं एवं अपनी बहनों की पढ़ाई के साथ-साथ दीपक ने अपने छोटे-बड़े शौक भी पूरे किये, जिन्हें पूरा करने के लिए दीपक ने लगातार संघर्ष और कठिन परिश्रम किया। किसी भी काम को छोटा न समझते हुए परिवार की आर्थिक झोंक संभालने के लिए दीपक ने कड़ी मेहनत की, और अपनी रोजी-रोटी के लिए किसी भी काम में कोई शर्म नहीं की। कुछ युवा साथी दीपक के बचपन से ही अच्छे दोस्त रहे हैं, जो दीपक की हर अच्छी-बुरी परिस्थितियों से भली भांति वाकिफ हैं। दोस्तों का साथ उन्हें बचपन से ही हर कदम पर मिलता रहा है। किशोरावस्था में दीपक को पांच (05) गांवों की संयुक्त श्री रामलीला कमेटी, चौखुटा, गजार, मझेड़ा, पोखराड़ एवं झांजर द्वारा आयोजित श्री रामलीला नाटक मंचन में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान ‘श्री राम’ के अभिनय का सौभाग्य मिला था, जिस भूमिका को दीपक ने बखूबी निभाया था। आज प्रभू श्री राम की कृपा दीपक पर बनी हुई है, और राम-नाम का फल हम सभी के सामने है।

समय बीतने के साथ ही युवा जोश के साथ दीपक ने ‘गौ सेवा’ का भी संकल्प लिया। युवा साथियों के साथ मिलकर सड़कों में आवारा घूम रहे गौवंशीय पशुओं को संरक्षण प्रदान करने के साथ रास्तों व जंगलों में मृत गौवंश को उचित स्थान पर दफनाने में बढ़-चढ़ कर सक्रिय भूमिका निभाई। उन्होंने सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़ कर अपनी सक्रिय भूमिका सुनिश्चित करते हुए स्वयं को समाज में आगे लाने का प्रयास किया। किसी भी सर्वाजनिक कार्य में दीपक ने स्वयं की समाज में एक अच्छी छवि बनाते हुए अन्य युवाओं का नेतृत्व करना बचपन से ही आरंभ कर दिया था।

दीपक ने अपने युवा साथियों के अपार समर्थन और जन भावनाओं को देखते हुए चुनाव लड़ने का फैसला किया, और उन्होंने चौखुटा जिला पंचायत क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाले बारह (12) गांवों में जनमत प्राप्त करने के लिए आरंभ से ही जनसम्पर्क तेज कर दिया था। दीपक को उनके साथियों और क्षेत्र के हमउम्र युवाओं का दिल खोलकर खुला समर्थन मिला, युवाओं ने खूब मेहनत व शांतप्रिय ढंग से प्रचार-प्रसार किया। युवाओं के इस आगाज को चुनाव की शुरुआत में कई जाने-माने लोगों ने उपहास के तौर पर लिया। लोगों ने यह भी कहा कि ‘छोरों के बस की राजनीति है ही कहां, जो दीपक को जिला पंचायत का चुनाव जिता सकें, ही-ही हा-हा में चुनाव थोड़े ही जीता जाता है, और गांवों में छोरों की सुनेगा ही कौन?’ कुछों ने तो यह भी कह डाला कि ‘दीपक को अपनी गरीबी को देखते हुए इस चुनाव में प्रतिभाग नहीं करना चाहिए। उसके पास है ही क्या, जिसके दम पर वह चुनाव लड़ रहा है?’ किन्तु इसके विपरीत दीपक को जनता का असीम प्रेम व आशीर्वाद मिला और युवाओं के आगाज का अंजाम सबके सामने है। दीपक अपने प्रतिद्वंदियों से एक बड़े अंतर के साथ चुनाव जीत गये। आज दीपक की इस ऐतिहासिक जीत के बाद लोगों की जुबां में बस एक ही लाइन है, ‘‘आंखिर छोरों ने कर ही दिखाया है।’’ इसे कहते हैं युवाशक्ति, मातृशक्ति और बड़े-बुजुर्गों के आशीर्वाद का बेजोड़ संगम। दीपक के संघर्ष को स्थानीय जनता ने अपना संघर्ष समझा और जहां पर भी जरूरत पड़ी, लोग दीपक के साथ पूरे तन-मन-धन से खड़े रहे। दीपक की जीत पर आज पूरे क्षेत्रवासी गौरवान्वित महसूस करते हैं, पक्ष-विपक्ष सब भूलकर दीपक की जीत के साथ समूचा क्षेत्र एकमत है। प्रतिद्वंदियों ने भी भले ही दीपक के साथ आपसी मतभेद से चुनाव लड़ा हो, लेकिन दीपक की जीत को जनता की जीत मानने से कोई भी इनकार नहीं कर सकता है, और यही देवतुल्य जनता का निष्पक्ष फैसला है। इससे यह शाबित हो जाता है कि चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवार का आर्थिक पक्ष मजबूत होना जरूरी नहीं है, और यह भी जरूरी नहीं है कि चुनाव धन खर्च करके ही जीता जा सकता है। इसके साथ ही यह भी सिद्ध हो गया कि वर्तमान समय में जागरुक जनता का मत प्राप्त करने के लिए धन व नशे का कहीं स्थान नहीं रह जाता है। जहां एक ओर कुछ प्रतिद्वंदियों ने बेसुमार धन खर्च किया, शक्ति-प्रदर्शन के लिए रैलियां भी निकाल डाली, और जनता को लुभाने के लिए कई टोटम करने के बावजूद भी उनकी दाल नहीं गल पाई, वहीं दूसरी ओर दीपक ने जनता की भावनाओं से जीत हासिल की। दीपक ने बड़ी सादगी के साथ लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाई और लोगों को उनका यह अंदाज भा गया। अतः यह कहना गलत नहीं होगा- ‘‘सादगी की मिसाल, गरीब का लाल बना जनता की आंखों का तारा।’’ आजतक जो लोग दीपक को उसकी कमजोर आर्थिकी के कारण अपने बराबर का नहीं समझते थे, आज के बाद उनके मुंह बंद हो चुके हैं। दीपक के पिता श्री गोपाल सिंह के लिए यह बडे़ गौरव का विषय है। आज तक समाज में जिस पिता का उपहास होता रहा, दीपक ने अपनी जीत से उस पिता का सिर समाज में ऊपर उठा दिया है। आज एक पिता को अपने पुत्र पर बड़ा नाज हो रहा होगा, जिसे वह अपने शब्दों में शायद बयां न कर सके।

आज हम यह कह सकते हैं कि मतदाता जागरुक हो रहा है, और जनता हर किसी उम्मीदवार का बड़ी समझदारी से हिसाब-किताब रखती है। आज दीपक के सामने एक बड़ा राजनैतिक प्लैटफार्म है। जनता के समक्ष बतौर एक सदस्य- जिला पंचायत बहुत कुछ कर पाने का एक सुनहरा अवसर भी है। जनता ने तो अपना फैसला कर दिया किंतु अब दीपक की बारी है। दीपक को जनता की उम्मीदों पर खरा उतरना है, और अन्य नेताओं से हटकर अपनी एक अलग पहचान और स्वच्छ छवि बनानी है, ताकि जनता की आंखों का यह तारा अपनी चमक दिन-दोगुनी, रात-चौगुनी बिखेरता रहे और जनसेवाओं के लिए आगे बढ़ता रहे।

मैं, व्यक्तिगत तौर पर दीपक को इस ऐतिहासिक जीत के लिए ढेर सारी बधाई एवं उज्ज्वल राजनैतिक भविष्य की हार्दिक शुभकामनायें ज्ञापित करता हूं। इसके साथ ही यह भी कामना करता हूं कि इस दीपक की ज्योत सदैव जगमगाती रहे और क्षेत्र में अपना प्रकाश बिखेरती रहे।

सह सम्पादक ‘‘बात पहाड़ की’’ राष्ट्रीय हिन्दी साप्ताहिक समाचार पत्र

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