त्रिस्तरीय पंचायतो जरा अपनी शक्तियों को याद करो

पंकज सिंह बिष्ट
त्रेता युग में जामवंत जी द्वारा हनुमान जी को उनकी शक्तियों का स्मरण कराने की बात तो आपको पता ही है, जिसके बाद हनुमान जी ने कई योजन की जलनिधि को एक ही छलांग में लांघ लिया था और न केवल सीता माता की खोज को अंजाम दिया, साथ ही लंका दहन कर रावण को अपनी शक्ति से भी परिचित कराया था। आज के युग में यानि कलयुग में त्रिस्तरीय पंचायतें भी उन्हीं हनुमान जी की ही तरह हैं जो अपनी शक्तियों को एक प्रकार से भूल गयी हैं। उन्हें विस्मृत और शक्तिहीन बनाने के पीछे हमारी सरकारों का वह श्राप है, जो वास्तविक ग्रामीण विकास को जनता से छीन कर उसे अनाथ बनाने में तुली हैं।

वह एक प्रसिद्ध कहावत है “नाम के बड़े, दर्शन के छोटे“ जो हमारी सरकारों की वर्तमान स्थिति पर बिल्कुल सही बैठती है। इसे कुछ ऐसे समझा जा सकता है कि हमारी सरकार के पास बड़े-बड़े दावे करने वाले सरकारी विज्ञापनों के लिए भरपूर बजट है, लेकिन गड्डों में तब्दील हो चुकी सड़कों को ठीक करने के लिए कोई बजट नहीं है।

सरकार से शिकायतें तो इतनी हैं कि एक नये शिकायत वेद की रचना की जा सकती है, लेकिन उसका कोई फायदा होगा, मुझे नहीं लगता। हम तो आज अपने हनुमान को उसकी शक्तियों को याद दिलाने की कोशिश करेंगे, जो अपनी शक्तियों को सरकार के श्राप के प्रभाव से भूल चुका है।

अभी दो दिन पहले हमने अपनी स्वतंत्रता की 79वीं वर्षगाँठ मनाई है और कुछ ही दिन पहले उत्तराखण्ड राज्य के 12 जिलों में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव भी सम्पन्न हुए हैं। जनता ने अपने गाँव, अपने क्षेत्र और अपने जिले की सरकार को चुनने के लिए मतदान किया है। इस कार्य को जनता ने उस विषम मौसमी समय की चुनौतियों के बावजूद अंजाम दिया है, जब प्रकृति अपने रौद्ररूप में पहाड़ों में कहर बनकर बरस रही है। इसके बावजूद अगर जनता ने मतदान किया है तो केवल इस अपेक्षा के साथ कि उनके गाँव, क्षेत्र और जिले में विकास नाम की चिड़िया प्रवास करने आ सके और कुछ समय विताकर उनका कुछ भला कर सके।

त्रिस्तरीय पंचायतें यदि चाहें तो अपने-अपने स्तर पर बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, सड़क, बिजली और पेयजल जैसी मूलभूत जरूरतों के लिए काम कर सकती हैं। वह हमारे प्राकृतिक संसाधनों; जल, जंगल और जमीनों के बेहतर प्रयोग को सुनिश्चित कर ग्रामीण विकास की धारा को बदलकर एक विकसित गाँव के प्रतिमान रच सकती हैं।

हमारी पंचायतों के पास 5 वर्ष का समय होता है, आपने क्षेत्र में कार्य करने के लिए। इस समय अवधि को यदि विस्तारित रूप में देखें तो यह 60 माह यानि 1825 दिन यानि 43800 घण्टे होते हैं। मुझे लगता है कि अगर हमारी पंचायतों को अपने क्षेत्र में क्या कार्य, कैसे, कब और कहाँ करना है, इसकी जानकारी हो जाये, तो गाँव-गाँव में उपरोक्त मूलभूत जरूरतों को पूरा करने के साथ ही वास्तविक विकास को होने से कोई नहीं रोक सकता।

किसी भी कार्य को करने से पहले उसे कैसे करना है इसकी जानकारी आवश्यक है। पंचायतों को पंचायतीराज व्यवस्था की गहन समझ और उसकी कार्य प्रणाली की जानकारी होनी चाहिए। ग्रामीण विकास के लिए कार्य करने वाले रेखीय विभागों और उनके द्वारा संचालित योजनाओं की जानकारी पंचायत प्रतिनिधियों को होनी चाहिए। ग्रामीण विकास के लिए सरकार द्वारा किए गये वित्तीय प्रबंधन और बजट से उन्हें अवगत कराया जाये। इन सबके लिए पंचायत प्रतिनिधि को विशेष रूप से प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।

पंचायत प्रतिनिधियों को चाहिए कि वह यह सुनिश्चित करें कि वह इस प्रशिक्षण में अनिवार्य रूप से पूरी तन्मयता के साथ प्रशिक्षण प्राप्त करें। हर छोटी से छोटी जानकारी को समझने का प्रयास करें, बकायदा हर जानकारी को नोट करके अपने पास रखें, जिससे वह अपने क्षेत्र में लोगों को लाभ दिला सकते हैं। गाँव के वार्ड सदस्य, ग्राम प्रधान, उप प्रधान, क्षेत्र पंचायत सदस्य, ब्लॉक प्रमुख, ज्येष्ठ उप प्रमुख, कनिष्ठ उप प्रमुख, जिला पंचायत सदस्य, जिला पंचायत अध्यक्ष, उपाध्यक्ष आदि सभी के लिए यह प्रशिक्षण अनिवार्य हो वह भी पूर्ण प्रशिक्षण समयावधि के साथ।

सभी जनप्रतिनिधियों को यह समझना होगा कि बिना पूर्ण जानकारी के आधी अधूरी जानकारी के साथ आप अपने क्षेत्र में कुछ भी कार्य नहीं कर सकते। वहीं जनप्रतिनिधि बनने के बाद अपने कर्तव्य का पालन न करने का सीधा अर्थ है, जनता के साथ धोखा करना, जनता के विश्वास के साथ खिलवाड़ करना और अपने क्षेत्र को विकास की दौड़ में जान-बूझकर पीछे धकेलना। जनता ने बड़े विश्वास के साथ आपको अपना प्रतिनिधि चुना है, उसके विश्वास को बनाये रखना सभी जनप्रतिनिधियों का मूल कर्तव्य है।

प्रशिक्षण के बाद अगला कदम है योजना निर्माण का, समस्या और आवश्यकता के चिन्हीकरण का। इसके लिए आवश्यक है कि गाँव के लोगों के साथ मिलकर ग्राम प्रधान व पंचायत सदस्य, क्षेत्र पंचायत सदस्य, ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत सदस्य, विकास खण्ड के अधिकारियों और कर्मचारियों के साथ मिलकर गाँव की समस्याओं और आवश्यताओं को चिन्हित करें, इसके लिए बाकायदा गाँव में उक्त सभी मिलकर रात्री प्रवास करें। इस दौरान ग्रामीणों के साथ बैठक की जाये और उनकी समस्याओं और आवश्यताओं पर चर्चा हो, उनके समाधान पर चर्चा हो, समस्याओं को दूर करने और आवश्यताओं की पूर्ति के लिए बजट पर चर्चा हो, जिससे गाँव के समग्र विकास की योजना तैयार की जा सके और अग्रिम कार्यवाही के लिए सभी प्रस्तावों को विकास खण्ड मुख्यालय को प्रेषित किया जा सके। इस प्रवास के दौरान ग्रामीणों को सरकारी योजनाओं की जानकारी दी जाये और उसे प्राप्त करने की प्रक्रिया से अवगत कराया जाये ताकि ग्रामीणों को उन योजनाओं का लाभ उठाने में आसानी हो।

उक्त के बाद विकास खण्ड स्तर पर सभी ग्राम पंचायतों से प्राप्त समस्याओं और आवश्यताओं से सम्बंधित प्रस्तावों पर चर्चा हो और वरीयता अनुसार कार्ययोजना, बजट निर्धारण, कार्यों को पूर्ण करवाने की जिम्मेदारी और कार्य पूर्ण करने का समय निर्धारित किया जाये।
जिला पंचायतें भी उक्त प्रक्रिया के दौरान गाँवों से प्राप्त प्रस्तावों के अनुसार विकास कार्यों की योजना का निर्माण करें। यदि इस प्रक्रिया को गम्भीरता के साथ अपना लिया जाये तो ग्रामीण समस्याओं को आसानी से दूर कर ग्रामीणों की आवश्यताओं को पूरा किया जा सकता है।

इसके लिए बहुत जरूरी है कि इस क्रम को नियमित रूप से ग्रामीण जनता, ग्रामीण जनप्रतिनिधियों, विभिन्न स्तर के सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों के साथ जारी रखा जाये। सभी योजनाओं को स्थानीय आवश्यताओं, भौगोलिक परिस्थितियों, पर्यावरणीय स्थिति एवं अनुकूलता के अनुसार तैयार किया जाये और उसके समय पर क्रियान्वयन को सुनिश्चित किया जाये। सरकार को चाहिए कि वह अपने मजबूत तंत्र के माध्यम से कार्य प्रगति की नियमित निगरानी और गुणवत्ता को सुनिश्चित करे। कमीशन खोरी और घूसखोरी को वास्तविक रूप में खत्म करें। कमीशन खोरी और घूसखोरी में लिप्त पाये जाने पर हर स्तर पर समान रूप से त्वरित कार्यवाही को सुनिश्चित करे।

यह सब तभी सम्भव है जब जनता और उसके जनप्रतिनिधि अपने अधिकार और कर्तव्यों को समझें। उन्हें अपनी वास्तविक शक्ति का अहसास हो, उन्हें सही और सटीक जानकारी हो, उन्हें अपना हक लेने की प्रक्रिया पता हो।

अब जागो त्रिस्तरीय पंचायतो जरा अपनी शक्तियों को याद करो। अपने गाँव और अपने समाज के विकास में अपने उच्चतम प्रयासों की आहूति दो।

सम्पादक ‘‘बात पहाड़ की’’

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