राजनैतिक वर्चस्व के लिए आँखिर यह कैसी भूख?

गणेश सिंह बिष्ट
उत्तराखण्ड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों का दौर जारी है। ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत सदस्यों के चुनावों के परिणाम आने के बाद से पंचायत प्रमुखों की दावेदारी के कई रंग चुनावी मैदान में बखूबी देखने को मिले। इसी बीच पक्ष और विपक्ष शाम- दाम-दण्ड-भेद की नीतियों के सहारे अपना वर्चस्व स्थापित करने में लगे दिखाई दिये। ग्राम पंचायत स्तर पर प्रधान, विकासखण्ड स्तर पर क्षेत्र पंचायत सदस्य, तथा जिला स्तर पर जिला पंचायत सदस्य का चुनाव जनता द्वारा सीधे मतदान से कर दिया जाता है, जबकि पंचायतों का गठन पूर्ण करने के लिए क्षेत्र पंचायत प्रमुख (ब्लॉक प्रमुख) व जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव चयनित सदस्यों के स्वतंत्र मतों से किया जाता है।

उत्तराखण्ड के समस्त जनपदों में दिनांकः 14 अगस्त 2025 को इन प्रमुखों के चुनाव सम्पन्न हुए, जिसमें इस बार बड़ा ‘खेला’ देखने को मिला। देश में आजादी के जश्न (स्वतंत्रता दिवस समारोह) से एक दिन पूर्व ही जनपद नैनीताल के राजनैतिक इतिहास में कुछ ऐसे पन्ने लिख दिये गये, जिन्हें नैनीताल की जनता शायद कभी न भूल पायेगी। निवार्चन केन्द्र की परिसीमा में प्रशासन के समक्ष आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन और खुलेआम गुण्डागर्दी देखने को मिली, और मौके पर उपस्थित सभी प्रशासनिक-कर्मी मूकदर्शक बने दिखाई दिये। हथियारों के दम पर विभिन्न क्षेत्रों से निर्वाचित जिला पंचायत सदस्यों के अपहरण का किस्सा सोशियल मीडिया में खूब गर्माया।

सत्ताधारी पार्टी एवं विपक्षी दल के नेताओं व समर्थकों के बीच तीखी नोक-झोंक भी देखने को मिली। जिले में कहीं गोलियों की धांय-धांय सुनाई दे रही थी, तो कहीं खनखनाहट के साथ चमकती तलवारें हवा में लहराती दिखाई दीं। पक्ष व विपक्ष के समर्थक एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते दिख रहे थे। जिला पंचायत प्रमुख यानि अध्यक्ष पद के लिए सत्ताधारी दल (भारतीय जनता पार्टी) की अधिकृत प्रत्याशी श्रीमती दीपा दरम्वाल थी, जबकि विपक्षी दल (कांग्रेस पार्टी) की अधिकृत प्रत्याशी श्रीमती पुष्पा नेगी थी। चुनाव के दिन सुबह से ही निर्वाचन केन्द्र में गर्मागर्मी का माहौल बना रहा। दिनांकः 14 अगस्त 2025 की प्रातःकालीन बेला से 15 अगस्त 2025 के ब्रह्ममुहूर्त तक लगातार चुनावी जंग जारी रही।

माननीय उच्च न्यायालय की मध्यस्थता में चुनाव की प्रक्रिया जारी रही, जबकि अंतिम निर्णय आज 18 अगस्त 2025 को सार्वजनिक रूप से सुनाया जाना शेष है। पक्ष व विपक्ष के समर्थकों ने माननीय उच्च न्यायालय के फैसले का सम्मान किया। चुनाव आयोग ने भी नियमानुसार निर्धारित मानकों और शर्तों के आधार पर चुनाव की प्रक्रिया पूर्ण की, जिसमें दोनों दलों के समर्थकों को कोई खामी नजर नहीं आई। किंतु पुलिस व जिला प्रशासन पर ही जनता का सवालिया निशान क्यों? पुलिस प्रशासन की मौजूदगी में एक दल के पांच समर्थक जन प्रतिनिधियों (मतदाता सदस्यों) को निर्वाचन क्षेत्र की परिसीमा से अपहृत कर लिया जाना, पुलिस प्रशासन की मूकदर्शिता पर बहुत बड़ा प्रश्नचिह्न है।

विभिन्न क्षेत्र की जनता द्वारा चयनित पांच सदस्यों को अपहृत कर उन्हें इस मतदान से ही वंचित रखा गया। माननीय उच्च न्यायालय ने अपहृत पांचों सदस्यों को सायं 04 बजे तक किसी भी प्रकार से खोजकर मतदान के लिए प्रस्तुत किये जाने के निर्देश जारी किये थे, किंतु प्रशासन इस पर नाकाम रहा। इससे प्रशासन की चुनरी भी दागदार नजर आ रही है, और एक बड़ा सवाल उठ रहा है कि प्रशासन मौन क्यों है? प्रशासन चाहे तो अपहृत सदस्यों को खोज निकालना उसके लिए कोई बड़ी बात नहीं थी। पुलिस और जिला प्रशासन आँखिर किसके दबाव में कार्य कर रहे थे? इससे साफ जाहिर होता है; जिसकी लाठी, उसकी भैंस। इससे सिद्ध हो जाता है कि सत्ताधारी पार्टी जो चाहे वह कर सकती है, और उसके पास जनता के हर सवाल का जवाब होता है।

चुनाव आयोग के नियम-शर्तां व दिशा-निर्देशों के परे जो होता है, वह जगजाहिर है। पंचायत चुनावों में बड़ी उम्मीद, विश्वास और अरमानों से ‘देवतुल्य जनता’ अपना प्रतिनिधि चुनती है। ऐसे ही चयनित सभी जनप्रतिनिधियों में से रसूखदार प्रतिनिधि ‘प्रमुख’ यानि ‘अध्यक्ष’ पद की दावेदारी प्रस्तुत करते हैं। यहां पर रसूखदारी का तात्पर्य ‘धन- बल की योग्यता’ से है। फिर शुरू होता है ‘देवतुल्य जनता’ के विश्वास और अरमानों की ‘बोली’ लगाने का खेला। ‘प्रमुख’ पद की दौड़ में शामिल उम्मीदवार अपने समकक्ष अन्य जनप्रतिनिधियों की बोली तय करते हैं। कौन महंगा बिकता है और कौन सस्ता? बोली की रकम जनप्रतिनिधि की वैयक्तिक क्षमता, मोल-भाव की योग्यता, और उसके राजनैतिक अनुभव पर निर्भर करती है।

क्षेत्र का विकास होना तो बहुत ही बड़ी बात है, क्योंकि एक पुरानी कहावत है; ‘विकास एक धीमी प्रक्रिया है, जिसमें कई दशकों का समय लगता है’, अतः पंचवर्षीय कार्यकाल में विकास की कोई उम्मीद न करें। देवतुल्य जनता व समर्थकों का भला हो न हो, प्रतिनिधियों का भला तो ये रसूखदार तय कर ही देते हैं। इसलिए यह कहना उचित ही होगा कि पंचायत चुनावों में योग्यता नहीं देखी जाती है, बल्कि उम्मीदवार की रसूखदारी देखी जाती है। यह तो सभी को स्वीकार्य है कि हर कोई प्रत्याशी अपना राजनैतिक वर्चस्व स्थापित करना चाहता है, जिसके लिए वह हर संभव राजनैतिक पैंतरे अपनाता है। किंतु सत्ता पाने के लिए अनैतिक मार्ग को अपना लेना, अवैध हथियारों के दम पर चुने गये जनप्रतिनिधियों को डराना-धमकाना, उनके साथ मार-पीट करना और उनका खुलेआम अपहरण कर लेना कितना सार्थक होगा? राजनैतिक वर्चस्व के लिए आँखिर यह कैसी भूख?

अगर आगे भविष्य में इसी प्रकार से लोकतंत्र की हत्या ही होनी है, तो हमारे देश में राजतंत्र क्या बुरा था? इससे तो बेहतर था कि हम लोग एक राजा की छत्र-छाया में जीते और हमारा हित-अहित राजा के निर्णय पर निहीत होता। वैसे भी तो हम पराधीन ही हैं। कहने को हम 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजी हुकूमत से आजाद हो गये थे, आज हम एक स्वतंत्र गणराज्य में निवास करते हैं, और हम 1950 से प्रतिवर्ष 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते आ रहे हैं। किंतु हम आज भी गुलाम ही हैं, क्या यह सत्य नहीं? हम गुलाम हैं ऐसे रसूखदारों के जो दिन-दहाड़े प्रशासन-कर्मियों की मौजूदगी में हथियारों के दम पर लोगों का अपहरण करने की हिम्मत जुटा पा रहे हैं, और जो भोले-भाले लोगों पर अपना वर्चस्व स्थापित कर राज कर रहे हैं।

अरे भई! ये रसूखदार यह क्यों नहीं समझते कि पंचायत चुनावों में जनता द्वारा चयनित कोई भी जनप्रतिनिधि जनता की आवाज होता है। उसका इस तरह से अपहरण कर लिया जाना जनता की आवाज को पैरों तले रौंदना ही कहा जा सकता है। राजनैतिक वर्चस्व के लिए जनप्रतिनिधियों की खरीद- फरोख्त होना जनता के अरमानों, विश्वास और उम्मीद का गला घोंटना है। इसके बावजूद भी हम बात करते हैं लोकतंत्र की? स्वतंत्र गणराज्य की? भ्रष्टाचार मुक्त शासन की? अरे भई! जो बिक गया वह क्या विकास करेगा? यह बात एक गहन सामाजिक चिंतन की है, जिसके लिए हमें एकजुट होना होगा। गहन चिंतन के लिए समाज के प्रबुद्धजनों को आगे आना चाहिए, क्योंकि हमारा समाज मूर्ख व अज्ञानियों के बड़बड़ाने से नहीं, अपितु बुद्धिजीवियों के चुप रहने से पिछड़ रहा है। जागो, बुद्धिजीवियों जागो! समाज को आपके बोल-वचनों की आवश्यकता आन पड़ी है। अन्यथा देश में एक परोक्ष ‘राजतंत्र’ स्थापित होते देर नहीं लगेगी।

सह सम्पादक

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