श्रावण मास का आगमन और ‘हरेला’ पर्वः जी रया, जागि रया

फोटो साभार इंटरनेट से।

हिन्दी पंचांग के अनुसार श्रावण मास के प्रथम दिन को पूरे देशभर में एक त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। देश के अलग-अलग स्थानों में यह दिन अलग-अलग परम्पराओं के अनुसार अलग-अलग त्यौहार के रूप में मनाया जाता है।

ऐसे ही उत्तराखण्ड के कुमाऊं क्षेत्र में यह दिन एक परम्परागत लोक पर्व ‘हरेला’ के रूप में मनाया जाता है। प्राचीनकाल से ही उत्तराखण्ड का यह लोक पर्व प्रकृति को समर्पित माना जाता है। आदिकाल से ही श्रावण मास भगवान शिव को समर्पित माना जाता है, जिस कारण इस पर्व का महत्व और भी अधिक हो जाता है।

‘हरेला’ का तात्पर्य ‘हरियाली’ से है, अलग-अलग मान्यताओं के अनुसार इस दिन से 10 से 12 दिन पूर्व आषाढ़ माह में हरेले की बुवाई की जाती है, जिसमें 5 से 7 प्रकार के मिश्रित अनाज (गेहूं, जौ, मक्का, धान, मास, तिल, गहत, आदि) बोये जाते हैं। इन अनाजां को बोने के लिए आस-पास के जंगल से शुद्ध मिट्टी लाई जाती है, जो कि बांज, खरसू, व अन्य पेड़ों की जड़ों के समीप से एकत्र की जाती है।

तिमिले, बेड़ू के पत्तों अथवा रिंगाल (छोटे बांस) से बनाई गई टोकरियों में अनाजों की बुवाई के उपरान्त इसे सुरक्षित व अंधेरे स्थान पर रख दिया जाता है, जहां सूर्य की रोशनी इन टोकरियों में सीधे न पड़े। हर रोज इन्हें सींचा जाता है और 10 से 12 दिनों में पौधों की लम्बाई 6 से 8 इंच तक हो जाती है, जिसे हरेला कहा जाता है।

श्रावण मास के प्रथम दिन यानि ‘हरेला पर्व’ के दिन हरेले की पूजा की जाती है, और कटाई कर दी जाती है। यह हरेला अपने घर व ईष्ट देवताओं के मंदिरों में चढ़ाया जाता है और कई स्थानों में हरेले के गीत गाये जाते हैं। मंदिरों में चढ़ाये जाने के उपरान्त अपने परिजनों, रिश्तेदारों, ईष्ट-मित्रों के सिर में भी यह हरेला चढ़ाया जाता है और शुभकामनाओं के साथ हरेला पर्व का आशीष बोला जाता है, जिसके बोल कुछ प्रकार से होते हैं;

लाख हरयाव, लाख बग्वालि,
जी रया, जागि रया, जुग-जुग बचि रया,
यो दिन, यो मास, सबन के भेंटने रया।
(लाखों हरियालियां बीत जायें, लाखों बसंत बीत जायें, आप सदैव जीतें रहें, जागते रहें, और युगों-युगों तक जीवित रहें, और आप इसी तरह इस माह के इस पवित्र दिन सब से मिलते रहें।)

आकाश जस ऊंच ह्वे जावा, धरती जस चकाव ह्वे जावा,
स्याव जसि बुद्धि ऐ जाव, स्यूं जस तराण ऐ जाव,
पाति जास पंगुरि जाया, दुब जास हंगुरि जाया,
किरमाव जास मेहनती ह्वे जावा, मौन जास किसाण ह्वे जावा।
(आप आकाश की तरह ऊंचाईयों को प्राप्त करें, धरती की चौड़ाई से धैर्यवान बनें, सियार की तरह चतुर बुद्धिवान बनें, सिंह की तरह ताकतवर बनें, हरी पाति की तरह सदाबहार यानि सूखे की स्थिति में भी हरेभरे बने रहें, दूब धास की तरह आपकी कीर्ति सम्पूर्ण विश्व में फैलती रहे, चींटी की तरह मेहनतकश हो जाऐं और आप मधुमक्खी की तरह मेहनती किसान बनें।)

हिमालय में ह्यूं छन तक, गंगा जी में पाणि छन तक,
सिल पिसी भात खाण तक, जाठि टेकि झांण जान तक,
जी रया, जागि रया, जुग-जुग बचि रया,
यो दिन, यो मास, सबन के भेंटने रया।।
(हिमालय में बर्फ के रहने तक, नदियों में पानी रहने तक, मुंह के दांत निकल जाने के बाद भात को पीस कर खाने की स्थिति आ जाने तक, लांठी के सहारे नित्यकर्म से निवृत्त होने की स्थिति आ जाने तक आप जीवित रहें, जीते-जागते रहें, और आप इसी तरह इस माह के इस पवित्र दिन सब से मिलते रहें।)

मौ जास मीठ ह्वे जावा, दूध जास स्यात ह्वे जावा,
बरगद जास दाड़ ह्वे जावा, बिगौत जास गाढ़ ह्वे जावा,
गौं क पधान ह्वे जावा, प्रजा क सम्मान पाया,
डॉक्टर, वकील बणि जाया, हमारी सरकार ह्वे जाया।
जी रया, जागि रया, जुग-जुग बचि रया,
यो दिन, यो मास, सबन के भेंटने रया।।
(आप शहद की तरह मीठे हो जाऐं, दूध की तरह श्वेत यानि पवित्र हो जाऐं, बरगद के वृक्ष की तरह मजबूत बने रहें, बिगौते यानि मां के पहले दूध की खीस की तरह गाढ़े बने रहें, गांव के प्रधान बन जाऐं, आपको प्रजा का सम्मान मिले, आप डॉक्टर बनें, वकील बनें, हमारी सरकार बन जाऐं, और आप इसी तरह इस माह के इस पवित्र दिन सब से मिलते रहें।)

हरेला पर्व के इन आशीर्वचनों में दुनिया की सभी शक्तियों को समाहित करा देने की शुभकामनाऐं दी जाती हैं। क्षेत्र से लगातार पलायन के चलते आज हमारी संस्कृति, हमारी लोकप्रिय परम्परायें, हमारी विरासत धीरे-धीरे विलुप्ति की कगार पर हैं, जिनका संरक्षण आज हर स्तर पर नितांत आवश्यक है।

आज की नई पीढ़ियों को यह सब जानना अतिआवश्यक है और उन्हें ये परम्परायें आगे बढ़ानी होंगी, ताकि हमारी संस्कृति और हमारी सर्वप्रिय परम्पराओं का देश-दुनिया में व्यापक प्रचार- प्रसार हो।

इसके साथ ही पिछले कुछ वर्षों से सरकार ने प्रकृति- पूजा के इस पावन ‘हरेला पर्व’ को व्यापक वृक्षारोपण अभियान से जोड़ दिया है, जिससे कुमाऊं के इस ‘हरेला पर्व’ की पहचान अब पूरे देश-विदेश तक हो चुकी है। कई वर्षों से लगातार वृक्षारोपण करके पूरे प्रदेशभर में ‘हरेला पर्व’ बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है।

प्रकृति ने हमें सब कुछ दिया है, हमें भी आवश्यक रूप से प्रकृति का संरक्षण करना होगा, और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षित सदुपयोग करना होगा। यही संदेश आने वाली पीढ़ियों को भी दिया जाना चाहिए।

गणेश सिंह बिष्ट
सह सम्पादक

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