किसान फिर भगवान

फोटो: राहुल कोतियल जी

किसान फिर भगवान कोरोना संकट से चल रही जद्दोजहद मालूम नहीं कब विराम लेगी। लेकिन इस लॉकडाउन ने यह साफ समझा दिया कि जीवन की असल आवश्यकताए बहुत सीमित हैं। पिछले 4 सप्ताह से हमको केवल खाने और भूख मिटाने की चिन्ता रही है। गाड़ी, बंगला, घूमना, नौकरी, शॉपिंग, पार्टी, उत्सव सब भुला दिया परिस्थितियों …

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कुतक्याई (हास्य व्यंग)

कुतक्याई (हास्य व्यंग)

कुतक्याई (हास्य व्यंग) व्यंग साहित्य में एक ऐसी विधा है जिसके माध्यम से साहित्यकार समाज और व्यवस्था के उन पहलुओं को सहज तरीके से हमारे बीच रखता है। जो हमें प्रभावित करते हैं। व्यंग समाज की वेदना, पीड़ा, बदलाव, अन्याय, अत्याचार को व्यक्त करने का वह माध्यम है जो हमें हमारी ही बातों से गुदगुदाता …

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पड़ी में दो और सही

पड़ी में दो और सही

बीती को बिसार के, आगे की सुध ले आज भारत में जितने चिकित्सक हैं वह यदि अपनी सम्पूर्ण क्षमताओं के साथ भी काम करना सुनिश्चित करें तो भी इस विशाल और फैले हुये देश के लिए नाकाफी हैं। क्योंकि देश में चिकित्सा सेवाओं की मांग बहुत है। और देश में कितने चिकित्सक हम तैयार कर …

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