बीती को बिसार के, आगे की सुध ले

आज भारत में जितने चिकित्सक हैं वह यदि अपनी सम्पूर्ण क्षमताओं के साथ भी काम करना सुनिश्चित करें तो भी इस विशाल और फैले हुये देश के लिए नाकाफी हैं। क्योंकि देश में चिकित्सा सेवाओं की मांग बहुत है। और देश में कितने चिकित्सक हम तैयार कर पा रहे हैं। यह एक आवश्यक क्षेत्र है जिसकी पहुच सब तक होनी ही चाहिए।

साथियो कोरोना संक्रमण से जंग अभी जारी है। 14 अप्रेल के बाद भी हमें यह संघर्ष यूं ही जारी रखना होगा। इसके साफ संकेत हैं और कई राज्यों ने इसे घोषित भी कर दिया। शायद यही मनुष्यता के हित में सर्वोपरि हो। पड़ी में दो और सही। जहां इतने दिन झेल लिया कुछ दिन और सही। लोग भी मानसिक रूप से इस पाबंदी को कुछ दिन और बढ़ाने के पक्ष में दिखते हैं। क्योंकि इसके अलावा कोई रास्ता भी नहीं है। लेकिन भारत जैसे देश में जहां प्रतिदिन हमारी जनसंख्या के अनुपात में बहुत कम जाँचें हो पा रही हैं। वहाँ लोगों को पूरी तरह आश्वस्त करने में बहुत समय लगेगा। ऐसे में जिन लाखों लोगों को लक्षणों के आधार पर जगह-जगह कूवारंटीन किया गया है, उनका धैर्य जवाब दे रहा होगा यह आसानी से समझा जा सकता है। जब ऐसी परिस्थितियाँ हों तो शायद मानसिक रूप से लोगों को दृढ़ता देना पहला कार्य हो जाता है।

कोरोना जैसे संकट ने भावी स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए कुछ आधार हमें दिये हैं साथ ही कैसे लोगों का मानसिक स्वास्थ्य ठीक हो इस आवश्यकता को भी प्रबलता प्रदान की है।

आज भारत में जितने चिकित्सक हैं वह यदि अपनी सम्पूर्ण क्षमताओं के साथ भी काम करना सुनिश्चित करें तो भी इस विशाल और फैले हुये देश के लिए नाकाफी हैं। क्योंकि देश में चिकित्सा सेवाओं की मांग बहुत है। और देश में कितने चिकित्सक हम तैयार कर पा रहे हैं। यह एक आवश्यक क्षेत्र है जिसकी पहुच सब तक होनी ही चाहिए।

चिकित्सा विज्ञानको हमें अपनी ओपचारिक शिक्षा में शामिल करना होगा ताकि समाज में बृहद स्तर पर सामान्य स्वास्थ्य सेवाओं को सुनिश्चित किया जा सके। सामान्य बीमारी में देखभाल, बीमारी की पहचान, सही समय पर सही निर्णय, प्राथमिक उपचार आदि का ज्ञान यदि देश के प्रत्येक परिवार तक ओपचारिक रूप से जा सके तो यह बहुत सहायक होगा। कम से कम बुखार नापना, किसी बीमारी के लक्षणों का निर्धारण, शारीरिक विकास, बच्चों, वृद्धों की देखभाल, बीमार परिजनों की उचित देखभाल की समझ व जानकारी आज की प्रबल आवश्यकता है। यदि यह कौशल और ज्ञान समाज में प्रत्येक परिवार की पहुँच तक होगा तो शायद इससे सबको मानसिक मजबूती भी मिलेगी। व्यवस्था के ऊपर दबाव भी कम होगा।

स्वास्थ्य के क्षेत्र में शायद हमें कुछ आधारभूत कोर्स शुरू करने चाहिए और इसे ओपचारिक शिक्षा के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना चाहिए। जिस तरह आज वैश्विक परिस्थितियाँ हैं उसमें शायद हमें भविष्य और भी संकटों से जूझना पड़े। इसके लिए ये हमारी पूर्व तैयारी होगी। जब हमारे पास कौशल और ज्ञान के साथ प्रत्येक परिवार के पास सक्षमता होगी तो प्रत्येक व्यक्ति को मानसिक मजबूती भी स्वाभाविक रूप से मिलेगी ही।

योग, प्रकृतिक चिकित्सा, आहार विज्ञान जैसे पाठ्यक्रमों के साथ साथ प्राथमिक उपचार तथा सामान्य शारीरिक बीमारियों के प्रबंधन कौशल को बढ़ाया जाना आज की नितांत आवश्यकता हो गयी है। इसके साथ ही मानसिक दृढ़ता हेतु भी कुछ काम किया जा सकता है। ताकि इस तरह के आपात काल में संघर्ष के दौरान हम अतिरिक्त कुशलता के साथ परिस्थितियों का मुक़ाबला कर सकें।

आलेख:

नैन सिंह डंगवाल (सामाजिक विचारक एवं लेखक)

सुनकिया (नैनीताल)

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