भारी संकट- कोरोना महामारी के कारण गाँव आये युवा और कामगार अब क्या करें? शहर या गाँव में से किसे चुनें? भविष्य की क्या योजना हो?

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अगर आप भी कोरोना महामारी के चलते महानगरों से अपने गाँव आये हैं या फिर आना चाहते हैं। इस दौर के बीतने के बाद दुबारा शहरों में जायें या न जायें यह निर्णय नहीं ले पा रहे हैं तो यह आलेख आपके काम का हो सकता है। यह आपको वह अंतिम निर्णय लेने में मदद कर सकता है, जो आपके भविष्य के लिए सबसे निर्णायक होगा। आप चाहें तो अपने कुछ चंद मिनट इस आलेख को पढ़ने के लिए देकर, इसमें लिखे तथ्यों पर विचार कर अपने व अपने परिवार के भविष्य के लिए किसी निर्णय तक पहुँच सकते हैं। या फिर चाहें तो केवल इसे मेरी बकवास समझकर अभी इसी वक्त इसे बन्द कर हमेशा कि तरह किसी और काम में मस्त हो सकते हैं।

हाँ सुरू करने से पहले एक बात और कहनी है अगर आपको इस आलेख को पढ़कर लगता है कि यह प्रभावी है तो इसे अपने हर उस चाहने वाले के साथ साझा करें जो इस संकट में शहर से अपने गाँव आया है, या आना चाहता है।

मैंने भी आपकी ही तरह महानगरों से अपनी आजीविका चलाने के लिए जिन्दगी का कभी न खत्म होने वाला संघर्ष सुरू किया था। इस लिए मुझे उस पीड़ा का अहसास है जो महानगरों रहते हुये हम उठाया करते हैं। वर्षों से बिना अपनी परवाह किये हम उद्योगों और कारखानों में अपनी हड्डियां गलाते आयें हैं। हममें से ही कुछ लोग होटलों या रेस्टोरेंट में वेटर तो कोई बर्तन धोकर, कोई किसी अमीर की कोठी में चपड़ासी बनकर अपनी आजीविका चलाता है। बरसात हो या खाल सुखा देने वाली गर्मी, चाहे हाड़ कपा देने वाली सर्दी हो या फेफड़ों को गलाने वाला प्रदुषण आज तक हमने कोई परवाह नहीं की। न अपने खाने की और न अपने आराम की। यह वह सच्चाई हैं जिसे हम हमेशा स्वीकार करने में कतराते आये हैं। आँखिर साल छः महिने में घर तो हम हीरो बनकर ही आते हैं ना? आये भी क्यों नहीं यही तो वह समय होता है जब हमें अपने लिए समय मिलता है।

अच्छा कभी आपने यह सोचा है कि हम जो पैसा इतने कष्ट और ओवर टाईम नौकरी कर कमाते हैं, वह हमारे कितने काम आता है? कभी उसका हिसाब लगाया है? चलिए अभी तो हमारे पास थोड़ा टाईम है अपनी कमाई का हिसाब लगाते हैं। क्योंकि आज हिसाब नहीं लगाया तो फिर इसी भ्रम में जीना पड़ेगा कि शहर की जिन्दगी गाँव से अच्छी है।

हममें से एक औसत व्यक्ति जो काम करने की सामान्य समझ रखता है, वह औसत लगभग 15000 रूपया प्रतिमाह शहर में रहकर कमाता है। इस कमाई को करने के लिए उसे अपने दैनिक समय का लगभग 50 प्रतिशत अर्थात 12 घंटा देना पड़ता है। अगर इस कमाई में इजाफा करना हो तो इसके अतिक्ति 5 घंटा और देना पड़ेगा। अब कमाई की तुलना में खर्च का हिसाब लगाते हैं। जो न्यूनतम कटैती के बाद भी निम्न प्रकार होता ही होता है-

  1. कमरे का किराया- 5000 रूपया प्रतिमाह (किराया व बिजली)

  2. खाने का सामान- 3000 रूपया प्रतिमाह (आटा, चावल, दाल, मसाले, तेल, चीनी, चाय आदि)

  3. दूध- 750 रूपया प्रतिमाह (आधा लीटर प्रतिदिन)

  4. सब्जी- 600 रूपया प्रतिमाह

  5. कुकिंग गैस- 500 रूपया प्रतिमाह

  6. मोबाईल व्यय- 250 रूपया प्रतिमाह

  7. पानी (जिसे कमरे से काम में जाने के दौरान खरीद कर पीते हैं)- 240 रूपया प्रतिमाह (4 गिलास प्रतिदिन 2 रूपया प्रति गिलास)

  8. दैनिक उपयोग की वस्तु जैसे (साबुन, तेल, पाउडर आदि)- 200 रूपया प्रतिमाह

यह वह खर्च है जिनमें कितना भी नियंत्रण किया जाय, शहरों में किराये पर रहने वाले व्यक्ति का होता ही है। जिसे हम अगर जोड़े तो यह 10540 रूपया प्रतिमाह होता है। अब इसे कोई अपना पेट काटकर कम भी करेगा तो कितना कर सकता है। अपने परिवार के साथ शहर में रहने वाले व्यक्ति का तो यह खर्च और भी बढ़ जाता है। इतने संघर्ष और कढ़ी मेहनत से कमाई गई आय में से माह के अंत में इस एक व्यक्ति के पास केवल 4500 रूपया प्रतिमाह ही बचता है। जिसे आपके और मेरे जैसे लोग अपने परिवार के भरण और पोषण के आपने गाँव भेज देते हैं।

हममें से अधिकतर लोग ऐसे भी होते हैं जो केवल अपने खाने लायक ही कमाते हैं। बचत का तो सायद कभी खयाल भी मन में नहीं आता है। ऐसे में जब हमारे बच्चों को अच्छी शिक्षा या उनके विवाह आदि का समय आता है तो हमें इसके लिए कर्ज लेना पड़ता है। जिसे हम जिन्दगी भर चुकाते रहते हैं। तो क्या अब भी आपको लगता है कि शहरों की जिन्दगी गाँव से बेहतर है? ऐसे में सबसे बड़ा सवाल उठता है कि शहर न जाये तो क्या करें? कैसे आय अर्जित की जाय? पैसा कहाँ से आयेगा? और भी ढेरों सवाल रात को नीद तक नहीं आने देते, अंदर ही अंदर सोच लगे रहते हैं कि क्या करें? ऐसे में वह लोग जिनकी जिम्मेदारी थोड़ा ज्यादा होती है, वह तो और भी बेचैन हो उठते हैं।

अब जब समस्या हमारी है तो क्या समाधान कोई और लाकर देगा। इस भरोसे में न ही रहें तो अच्छा होगा। ऐसे में हमारे लिए सिर्फ एक विकल्प रहता है कि अपने गाँव में रहा जाय, यहीं रहकर कुछ काम कर लिया जाय। लेकिन करें क्या? फिर वही सवाल, अरे भाई सवाल ही सोचते रहोगे या जवाब भी खोजोगे? चलिए जवाब मैं देता हूँ लेकिन इससे पहले मेरी कुछ और बातों को समझना होगा। जिससे आप बिल्कुल पक्का कर लेंगे कि यह आपके लिए हितकर है।

आज जब कोरोना महामारी फैली है और दुनियां थम सी गयी है। ऐसे में हमारे लिए किस चीज की जरूरत सबसे ज्यादा जरूरी है? यही ना कि अपना व अपने परिवार का स्वास्थ्य ठीक रखें और अपना पेट भर सकें। आपका जवाब मेरी इसी बात पर छिपा है जिसमें से धीरे-धीरे परदा उठ रहा है। आपके पास अपने गाँव में अपना घर है जिसका आपको किराया नहीं देना है। आपके पास खेती की जमीन है जिसमें आप कोई भी बीज डालेंगे तो वह उगेगा ही उगेगा। आपके पास दुधारू जानवर पालने की क्षमता है। आपके पास पानी को थामने की क्षमता है। आपके पास साफ और स्वच्छ हवा है। ईश्वर ने आपको इंसान बनाया है आपको एक शरीर दिया है और उसमें एक दिमाग दिया है, जिसका स्तेमाल आप सकारात्मक दिशा में सोचने के लिए कर सकते हो।

गाँव आने से आपके उन खर्चों में 50 प्रतिशत से भी ज्यादा की कटौती हो रही है, जो आप शहर में रहते कर रहे होते हो। आपको साफ हवा और पानी मिल रहा है क्या इसकी कोई कीमत नहीं?

हम खेती, पशुपालन, मधुमक्खी पालन, मुर्गी पालन, बकरी पालन, मछली पालन, उत्पादों का मूल्य वर्धन इन सबको साथ मिलाकर एकीकृत रूप में कर सकते हैं। आज इन सब की माँग है, इन सबको करने के लिए सरकार व बैंक सहायता दे रहे हैं। क्या हम इन्हें स्वरोजगार के रूप में नहीं अपना सकते? इसका परिणाम हर प्रकार से सुखद ही होगा। इससे न केवल आपके परिवार के पोषण के लिए पर्याप्त उत्पाद मिलेंगे वरन इसके बाद जितना अतिरिक्त बचता है उसे आप बेचकर आय अर्जित कर सकते हैं। मैं दावे के साथ कहता हूँ कि वह आय अपकी हाड़ सुखा कर बचायी शहर की उस बचत से कहीं अधिक होगी, जिसे आप लाख कोशिशों के बाद भी नहीं बचा सकते हैं।

आज तकनीकी ने इतना विकास और विस्तार कर लिया है कि लोग घरों की छत पर खेती कर हजारों कमा ले रहे हैं। बिना जमीन और मिट्टी के भी खेती संभव है। आपके पास तो खेती करने के लिए अपार सुविधायें उपलब्ध हैं। युवा एकीकृत ग्रामीण कृषि में भी अपना भविष्य संवार सकते हैं

आज तकनीकी ने इतना विकास और विस्तार कर लिया है कि लोग घरों की छत पर खेती कर हजारों कमा ले रहे हैं। बिना जमीन और मिट्टी के भी खेती संभव है।

आपके गाँव भारत के किसी भी कोने में क्यों नहीं हो वह आपको पालने और सभालने में सक्षम हैं। यह आप भी मानते हो और इसी लिए आप इस संकट की घड़ी में अपने गाँव आये हैं या आना चाहते हैं। मुझे नहीं पता कि इस आलेख को कितने लोग पढ़ेंगे या मेरी लिखी बात कितने लोग समझेंगे। यह आप पर निर्भर है।

हमें सायद यह फैसला लेने के बाद थोड़ा ठिनाई हो, हमारे सामने कष्ट आयें। लेकिन यह कष्ट आपको एक अच्छा कल दे सकते हैं। यह आपकों महानगरों में अपना जीवन खपाने से कहीं अच्छे होंगे। गाँव में आपको होने वाली हर समस्या का समाधान है लेकिन इसके लिए आपको स्वयं कदम उठाने होंगे। हम सब मिलकर यह कर सकते हैं। आईयें हम मिलकर एक अभियांन की सुरूवात करें और शहरों से अपने गाँवों की ओर बढ़ें।

इस आलेख के अंत में एक निवेदन हैं कि अगर आपको यह आलेख अच्छा लगा तो, इस आलेख को एक दूसरे के साथ साझा करिए, अपने लोगों को पढ़ने के लिए कहिए, अपनी प्रतिक्रिया दीजिए और अपने अनुभवों को हमारे साथ साझा कीजिए। हम आपकों हर उस ग्रामीण समस्या का समाधान करने में सहयोग करेंगे जिसका आप गाँव में रहते सामना करेंगे। अगर आपके कोई प्रश्न हो तो नीचे दिये गये कमेंट बाक्स में लिखकर हमें भेजिए।

इस आलेख को पढ़ने दिये गये समय के लिए आपका धन्यवाद।

आलेखः

पंकज सिंह बिष्ट

3 thoughts on “”

  1. बहुत ही बढ़िया जानकारी जिसका सदुपयोग किया जा सकता है। सराहनीय ✍️

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