बटन मशरूम की खेती कैसे करें (सम्पूर्ण जानकारी हिन्दी में) | How to cultivate Button Mushroom (Complete information in Hindi)
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दोस्तों नमस्कार!
मशरूम की खेती एक बेहतर मुनाफे का व्यवसाय है। एक भूमि हीन व्यक्ति भी इस व्यवसाय को आराम से कर सकता है। एक छोटे से कमरे में भी इस व्यवसाय को सुरू किया जा सकता है।
इस आलेख में हम आपको बटन मशरूम की खेती से सम्बंधित सम्पूर्ण जानकारी प्रदान करेंगे। आप उत्पादन की प्रत्येक बारीकी को ठीक से समझ सकें, इसलिए हम सरल भाषा में जानकारी उपलब्ध करा रहे हैं।
अपनी रूचि और पसंद के अनुसार जानकारी पढ़ने के लिए ऊपर दिये गये Table of Contents के लिंकों पर क्लिक करें।
अगर आपके कोई प्रश्न हो या किसी और विषय में जानकारी चाहते हैं तो कृपया आलेख के अंत में दिये गये कमेंट बाक्स में अपना सवाल लिख भेजिए।
बटन मशरूम का परिचय
बटन मशरूम वैज्ञानिक नाम अगेरिकस बाइस्पोरस Agaricus bisporus को खुम्बी और च्यौं के नाम से भी जाना जाता है। पोषक तत्वों से भरपूर मशरूम को पूरी दुनियाँ में उगाया और खाया जाता है।
भारत और दुनियाँ भर में खाने योग्य मशरूम की कई प्रजातियों का उत्पादन किया जाता है, लेकिन बटन मशरूम सबसे अधिक पसंद की जाने वाली प्रजाति है।
बटन मशरूम की खेती के लिए उपयुक्त समय क्या है?
भारत में बटन मशरूम की खेती दो प्रकार से की जाती है 1. पहला केवल मौसम आधारित 2. दूसरा पूरे वर्ष भर।
अगर प्राकृतिक रूप से इसके उत्पादन के लिए सही समय और मौसम की बात की जाय तो अक्टूबर से मार्च के बीच का समय अच्छा माना जाता है। अलग- अलग भौगोलिक परिस्थितियों और तापमान के अनुसार इस समय में थोड़ा अंतर भी हो सकता है।
बटन मशरूम उत्पादन के लिए सही तापमान और आर्द्रता
वैज्ञानिक प्रयोगों और प्रयोगात्मक अनुभवों के आधार पर 15०C से 25०C तापमान और 80 से 85 प्रतिशत तक आर्द्रता बटन मशरूम उत्पादन के लिए होना अनिवार्य है। यह स्थितियां मशरूम के फलनकाय के विकास और अच्छे उत्पादन के लिए मुल भूत जरूरतें हैं।
इन परिस्थितियों को कृत्रिम रूप से नियंत्रित कर पूरे वर्ष भी बटन मशरूम की खेती की जा सकती है। इस प्रकार किसान अधिक आय भी अर्जित कर सकते हैं।
बटन मशरूम की खेती के लिए मीडिया या माध्यम का प्रयोग
जिस प्रकार से किसी फसल को उगाने के लिए खेत और मिट्टी की जरूरत होती है, जिसमें फसल की बुवाई की जाती है। ठीक उसी प्रकार से बटन मशरूम की खेती के लिए एक खास विधि से तैयार कम्पोस्ट यानि एक प्रकार की खाद की आवश्यकता होती है, इसी कम्पोस्ट को मीडिया या माध्यम या पोषाधार कहा जाता है।
कम्पोस्ट कृत्रिम रूप से तैयार किया गया एक ऐसा माध्यम है, जिससे मशरूम की कायिक संरचना को पोषण प्राप्त होता है और उसके फलनकाय के विकास से मशरूम का उत्पादन प्राप्त होता है।
दूसरे मायनों में कम्पोस्ट बनाने का मुख्य उद्देश्य मशरूम उत्पादन के लिए उच्चतम पोषण परिस्थितियों का विकास करना है, ताकि उच्च गुणवत्ता का बेहतरीन उत्पादन प्राप्त किया जा सके।
चलिए जानते हैं कि बटन मशरूम की खेती के लिए प्रयुक्त होने वाली कम्पोस्ट को आँखिर तैयार कैसे किया जाता है।
आयस्टर या ढिंगरी मशरूम की उत्पादन विधि
बटन मशरूम के लिए खास प्रकार की कम्पोस्ट खाद कैसे तैयार की जाती है?
बटन मशरूम की खेती के लिए कयी विधियों द्वारा कम्पोस्ट बनाया जाता है। इन सभी विधियों को हम क्रमशः आगे आपको बतायेंगे।
आप अपनी इच्छानुसार और सुविधानुसार इनमें से किसी भी विधि को अपना कर कम्पोस्ट तैयार कर मशरूम उगा सकते हैं।
बटन मशरूम की खेती के लिए कम्पोस्ट बनाने की विधियां
कम्पोस्ट निर्माण कार्य के लिए पक्के फर्स या खास प्रकार के कम्पोस्टिंग शेड का प्रयोग कर, बटन मशरूम उत्पादन के लिए निम्न विधियों से कम्पोस्ट तैयार की जा सकती है-
1. दीर्घावधि विधि
2. अल्पावधि विधि
कम्पोस्ट बनाने की दीर्घावधि विधि
दीर्घावधि विधि से कम्पोस्ट तैयार करने में लगभग 28 दिनों का समय लगता है। इस अवधि के दौरान 7 से 8 बार कम्पोस्ट की पल्टाई का कार्य किया जाता है।
दीर्घावधि विधि से कम्पोस्ट बनाने के लिए निम्न सामग्रियों का प्रयोग निर्धारित मात्रा में, बताई गयी विधि के अनुसार करने से आप बेहतरीन कम्पोस्ट को स्वयं बना सकते हैं। जिससे अपने अतिरिक्त खर्च को कम कर सकते हैं।
आईयें जानते हैं वह कौन सी सामग्री हैं जिन्हें आप कम्पोस्ट बनाने में प्रयोग कर सकते हैं-
क्र.सं. | सामग्री का नाम | मात्रा |
1. | गेहूँ का भूसा या | 1000 कि.ग्रा. |
2. | धान का पुआल | 1200 कि.ग्रा. |
3. | अमोनियम सल्फेट और कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट | 30 कि.ग्रा. |
4. | सुपर फास्फेट | 10 कि.ग्रा. |
5. | पोटाश | 10 कि.ग्रा. |
6. | यूरिया | 10 कि.ग्रा. |
7. | जिप्सम | 100 कि.ग्रा. |
8. | गेहूँ का चोकर | 50 कि.ग्रा. |
9. | फ्यूराडान | 500 ग्राम |
10. | बी. एच. सी. | 500 ग्राम |
कम्पोस्ट बनाने की तैयारी कैसे करें?
कम्पोस्ट निर्माण प्रक्रिया को सुरू करने से लगभग 48 घण्टे पहले भूसे की पतली परत को फर्श पर फैला लीजिए। अब किसी फौव्वारे की मदद से भूसे को अलट- पलट कर पानी से तर कर 48 घण्टे के लिए छोड़ दीजिए।
कम्पोस्ट बनाना प्रारंम्भ करें
लगभग 75 प्रतिशत नमी वाले भूसे से कम्पोस्ट निर्माण कार्य को प्रारंम्भ किया जा सकता है। यदि नमी अधिक हो तो कुछ देर भूसे को छाया में सुखाया जा सकता है, ताकि नमी का प्रतिशत 75 प्रतिशत तक लाया जा सके।
एक बात का विशेष ध्यान रखें कि कम्पोस्ट निर्माण के दौरान बताई गयी प्रक्रिया को अनवार्य रूप से फॉलों करें, तभी आप उच्च गुणवत्ता की कम्पोस्ट तैयार कर सकेंगे।
कम्पोस्ट निर्माण के लिए नमी युक्त भूसे में अन्य सामग्री को मिलाना
अब 75 प्रतिशत नमी वाले भूसे में गेहूँ का चोकर, कैल्शियम, यूरिया, पोटाश तथा सुपर फास्फेट को अच्छे से मिला दें।
अब लकड़ी के पट्टों या पूर्व में तैयार तख्तों की मदद से तैयार भूसे के मिश्रण का 1.5 मीटर चौड़ा X 1.25 मीटर ऊँचा किसी भी लम्बाई का ढेर बना लीजिए।
मिश्रित भूसे के ढेर को तैयार करने के बाद लकड़ी के तख्तों अलग कर दें और इस ढेर को आने वाले 24 घण्टों तक ऐसे ही छोड़ दें।
इस समय अवधि के दौरान भूसे के इस ढेर का आंतरिक तापमान 70०C से 75०C तक पहुँच जाना चाहिए। इस दौरान यदि ढेर की बाहरी सतह की नमी कम हो जाय तो, इस बाहरी सतह पर किसी स्प्रेयर के माध्यम से 1 या 2 बार पानी का हल्का छिड़काव कर दें।
कम्पोस्ट के ढेर की पहली पल्टाई
उक्त प्रकार से तैयार मिश्रित भूसे के कम्पोस्ट ढेर की पहली पल्टाई 6 दिन में करनी चाहिए। पल्टाई करते समय ढेर के चारों ओर की बाहरी सतह से 15 से.मी. अंदर तक के भाग को निकाल कर एक जगह फर्श में फैला दीजिए। शेष बचे दूसरे ढेर को फर्श पर किसी अन्य स्थान पर फैला दें।
अब फर्श में बाहरी भाग की कम्पोस्ट को ढेर के अंदर डालकर और भीतरी भाग की कम्पोस्ट को बाहर डालकर लकड़ी के तख्तों की सहायता से पूर्ववत् आकार का ढेर बनाकर छोड़ दीजिए।
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कम्पोस्ट के ढेर की दूसरी पल्टाई
कम्पोस्ट का ढेर बनाने के 10वें दिन में कम्पोस्ट को दूसरी बार पल्टा जाता है। इस दौरान बाहरी और भीतरी भाग को प्रथम बार की तरह ही अलग कर फर्श में फैला दें। बाहरी भाग में नमी कम होने पर आवश्यक मात्रा में पानी का छिड़काव कर फिर से कम्पोस्ट का ढेर बना दें।
ढेर बनाने वक्त इस बात का ध्यान रखें कि, कम्पोस्ट का बाहरी भाग ढेर के भीतर व भीतरी भाग ढेर के बाहर की ओर डाला जाना चाहिए।
कम्पोस्ट के ढेर की तीसरी पल्टाई
कम्पोस्ट के ढेर की तीसरी पल्टाई प्रथम बार ढेर बनाने के 13वें दिन में, पूर्व की भाँति ही की जानी चाहिए। लेकिन 13वें बार में ढेर बनाते वक्त इसमें जिप्सम और फ्यूराडान मिला देना है।
कम्पोस्ट के ढेर की चौथी पल्टाई
कम्पोस्ट के ढेर की चौथी पल्टाई 16वें दिन में पूर्व की भाँति कर फिर से पूर्ववत् ढेर का निर्माण कर देना चाहिए।
कम्पोस्ट के ढेर की पाँचवी पल्टाई
पाँचवी पल्टाई कार्य को 19वें दिन में पूर्व की भाँति कर उसमें बी.एच.सी. मिलाकर पूर्ववत् ढेर का निर्माण कर देना चाहिए।
कम्पोस्ट के ढेर की छठी पल्टाई
कम्पोस्ट के ढेर की छठी पल्टाई 22वें दिन में पूर्व की भाँति कर पूर्ववत् ढेर का निर्माण कर देना चाहिए।
कम्पोस्ट के ढेर की सातवीं पल्टाई
कम्पोस्ट ढेर की सातवीं पल्टाई 25वें दिन की जाती है। अगर इस दौरान कम्पोस्ट में अमोनिया गैस निकलने लगे तो यह कम्पोस्ट बटन मशरूम की बीजाई के लिए तैयार माना जाता है।
यदि कम्पोस्ट में से 25वें दिन अमोनिया गैस नहीं निकल रही हो तो, ऐसी स्थिति में फिर से पूर्व की भाँति ढेर बनाकर छोड़ देना चाहिए। इस प्रकार तैयार ढेर की आठवीं पल्टाई 28वें दिन कर फिर से ढेर का निर्माण कर लेना चाहिए और 30वें दिन इस प्रकार से तैयार कम्पोस्ट में बीजाई कार्य किया जाना चाहिए।
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कम्पोस्ट बनाने की अल्पावधि विधि
अल्पावधि विधि से कम्पोस्ट निर्माण अपेक्षाकृत कम समय में किया जा सकता है। इस विधि से कम्पोस्ट बनाने में लगभग 16 दिनों का समय लगता है।
इसके अतिरिक्त दीर्घवधि विधि के मुकाबले इस विधि में बहुत कम सामग्रीयों की आवश्यकता होती है। इस प्रकार से तैयार कम्पोस्ट में बटन मशरूम की अधिक पैदावार के साथ ही फसल में रोगों व कीटों का प्रकोप भी बहुत कम होने की संभावना होती है।
अल्पावधि विधि में कम्पोस्ट निर्माण कार्य को 2 चरणों क्रमशः 1. पहला आउट डोर कम्पोस्टिंग और 2. दूसरा इन डोर कम्पोस्टिंग में किया जाता है।
अल्पावधि विधि से कम्पोस्ट निर्माण में लगने वाली सामग्री व मात्रा-
क्र.सं. | सामग्री का नाम | मात्रा |
1. | गेहूँ का भूसा | 1000 कि.ग्रा |
2. | मुर्गी की खाद | 600 कि.ग्रा. |
4. | यूरिया | 15 कि.ग्रा. |
5. | गेहूँ का चोकर | 60 कि.ग्रा. |
6. | जिप्सम | 60 कि.ग्रा. |
अल्पावधि विधि का प्रथम चरण आउट डोर कम्पोस्टिंग
गेहूँ के साफ भूसे में मुर्गी खाद को अच्छे से मिलाकर उसे ठीक से भिगा लेना चाहिए। इसके बाद भिगोये गये मिश्रण का 45 से.मी. ऊँचा ढेर किसी फर्श पर 7 दिनों के लिए लगा देना चाहिए।
इस दौरान चौथे दिन में एक बार ढेर की पल्टाई कर चाहिए। इसके बाद सातेवें दिन गेहूँ के चोकर, जिप्सम व यूरिया को गीले भूसे में भलि भाँति मिलाकर 125 से 150 से.मी. ऊँचा, 125 से 150 से.मी. चौड़ा व लम्बाई उपलब्धता के अनुसार रखकर ढेर का निर्माण करना चाहिए।
इस प्रकार बनाये गये ढेर का आगामी 24 घण्टे में आंतरिक तापमान 70०Cसे 75०C तक पहुँच जाना चाहिए। तापमान को थर्मामीटर की सहायता से मापना उचित रहता है।
इस दौरान चौथे दिन कम्पोस्ट ढेर की प्रथम, छठे दिन द्वितीय, आठवें दिन तृतीय पल्टाई करने के साथ ही कम्पोस्ट में जिप्सम मिला देना चाहिए। पहली बार में ढेर बनाने के 10वें दिन कम्पोस्ट को पास्चुरीकरण के लिए टनल में भर देना चाहिए।
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अल्पावधि विधि का दूसरा चरण इन डोर कम्पोस्टिंग
इन डोर कम्पोस्टिंग का प्रथम दिवस
प्रथम चरण के 10वें दिन कम्पोस्ट को पास्चुरीकरण हेतु कक्ष में भरने के बाद कक्ष के दरवाजे और हवादान को बंद कर देना चाहिए। कम्पोस्ट के तापमान को 40०C से 45०C लाने के लिए ब्लोअर का प्रयोग करना चाहिए।
इस दौरान इस बात का ध्यान रखें कि चैंबर के अंदर हवा व कम्पोस्ट के तापमान में 1०C से 3०C से अधिक की वृद्धि होने पर ब्लोअर को और समय तक चलायें।
इन डोर कम्पोस्टिंग का द्वितीय दिवस
दूसरे दिन कम्पोस्ट का तापमान वाष्प की मदद से धीरे- धीरे 1०C से 3०C प्रति घण्टा की दर से बढ़ाते हुये 58०C से 60०C पर लायें और आगामी 6 से 8 घण्टे तक तापमान को स्थिर रखें।
इसके बाद वाष्प के प्रवेश को बंद कर दें और हवादान को 15 से 20 प्रतिशत खोलकर कम्पोस्ट का तापमान 48०C से 52०C तक लायें। इसके साथ ही अमोनिया रिलीज करने के लिए डैम्पर को 5 से 10 प्रतिशत खोले रखें।
इन डोर कम्पोस्टिंग का तीसरे से पाँचवां दिन
इन डोर कम्पोस्टिंग के तीसरे से पाँचवें दिन के बीच कम्पोस्ट का तापमान 48०C से 52०C तक रखें। इस दौरान कम्पोस्ट की कन्डीशनिंग के लिए साफ हवा के आवागमन हेतु हवादान को 20 प्रतिशत तक खुला रखें, साथ ही अमोनिया रिलीज डैम्पर को भी खुला रखें।
इन डोर कम्पोस्टिंग का छठा दिन
इन डोर कम्पोस्टिंग के छठे दिन में कम्पोस्ट को पास्चुरीकरण कक्ष से बीजाई कक्ष में ले जाना चाहिए और कम्पोस्ट का तापमान 20०C से 25०C तक आने से पूर्व ही बीजाई कार्य को कर लेना चाहिए।
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गुणवत्तापूर्ण कम्पोस्ट के गुण जानें
- गुणवत्तापूर्ण और अच्छे से तैयार कम्पोस्ट गहरे भूरे रंग की होती है।
- अच्छे से तैयार कम्पोस्ट अमोनिया की गंध से रहित होती है।
- कम्पोस्ट का पी.एच. मान 7.5 होता है।
- कम्पोस्ट में 68 से 72 प्रतिशत तक नमी होनी चाहिए।
- इस कम्पोस्ट में 2.2 प्रतिशत नाईट्रोजन होना चाहिए।
मशरूम उत्पादन में बीजाई क्या होती है?
अच्छे से तैयार माध्यम कम्पोस्ट में मशरूम का बीज मिलाने को ही बीजाई कहा जाता है। मशरूम का बीज कल्चर के रूप में होता है जिसे स्पान भी कहा जाता है। बीजाई कार्य को स्पानिंग के नाम से भी जाना जाता है।
बटन मशरूम की बीजाई दर क्या होनी चाहिए?
बटन मशरूम की बीजाई के लिए प्रति क्विंटल तैयार कम्पोस्ट में 500 से 700 ग्राम (यानि 0.5 से 0.75 प्रतिशत की दर से) स्पान को अच्छी तरह मिलाकर बीजाई की जानी चाहिए।
बटन मशरूम की बीजाई के बाद क्या करें?
कम्पोस्ट ठीक से बीजाई करने के बाद उस कम्पोस्ट को लकड़ी, धानु या बाँस से तैयार सेल्फ में अथवा पॉलिथीन बैग में हल्का दबाकर भरना चाहिए। ध्यान रहे कि सेल्फ में 80 से 100 कि.ग्रा. प्रति मीटर2 की दर से तथा पॉलिथीन बैग में 10 से 15 कि.ग्रा. प्रति बैग की दर से कम्पोस्ट भरनी चाहिए।
बीजाई के बाद भरी हुई कम्पोस्ट को कैसे ढकें?
सेल्फ को बीजाई की हुई कम्पोस्ट से भरने के बाद किसी निर्जीवीकृत अखबार से ढक देना चाहिए। अखवारों को निर्जीवीकृत करने के लिए उनमें एक सप्ताह पूर्व फॉर्मेलीन के घोल से स्प्रे करना चाहिए। अगर कम्पोस्ट को भरने के लिए पॉलिथीन बैग का प्रयोग कर रहे हैं तो बैग को ऊपर से मोड़ कर बंद किया जा सकता है।
बटन मशरूम की बीजाई के बाद फसल कक्ष का तापमान व आर्द्रता कितनी होनी चाहिए?
बीजाई के बाद फसल कक्ष में अनुकूल तापमान एवं आर्द्रता बनायें रखना अत्यंत आवश्यक होता है। इसके अभाव में फसल की ग्रोथ प्रभावित हो सकती है और फसल खराब भी हो सकती है।
बटन मशरूम की स्पानिंग के बाद फसल कक्ष का तापमान 22०C से 23०C तक व आर्द्रता 85 से 90 प्रतिशत तक बनाये रखना चाहिए।
तापमान व आर्द्रता की सही स्थिति जानने के लिए आवश्यक उपकरणों जैसे थर्मामीटर व हाईग्रोमीटर का प्रयोग करें। तापमान व आर्द्रता को बनाये रखने के लिए ब्लोअर और पानी के स्प्रेयर का प्रयोग किया जा सकता है।
नमी को बनाये रखने के लिए ढकने में प्रयुक्त अखबारों के ऊपर, फसल कक्ष के फर्श तथा दीवारों में, दिन में स्प्रेयर की सहायता से दो बार हल्के पानी का छिड़काव किया जा सकता है।
मशरूम में फलनकाय की वृद्धि को कैसे पहचानें?
बटन मशरूम की फसल में फलनकाय की वृद्धि पहचाने के लिए फसल निम्न बिन्दुओं की जाँच करें-
- सेल्फ या पॉलिथीन बैगों में बीजाई के 6 से 7 दिन के बाद धागे नुमा फफूँद की वृद्धि को देखें।
- बीजाई के 12 से 15 दिनों में कम्पोस्ट की सतह सफेद हो जायेगी।
- बिछे गये अखवार के ऊपर फफूँद फैलने लगेगी।
अगर फसल में उक्त गतिविधि दिखाई दे तो बिछे गये अखवार के ऊपर फैली फफूँदी को ढकने के लिए प्रयुक्त आवरण मृदा यानि मिट्टी से ढक देना चाहिए।
आवरण मृदा (केसिंग स्वायल) क्या कार्य करती है?
आवरण मृदा कम्पोस्ट के ऊपर फैली हुई फफूँदी को ढकने में प्रयोग की जाती है, जिसे परत के रूप में फफूँदी के ऊपर बिछाया जाता है।
यह आवरण मृदा कम्पोस्ट से भरे सेल्फ या बैगों में नमी को बनाये रखने के साथ ही गैसों के आदन-प्रदान में कवक को सहायता प्रदान करते हैं।
आवरण मृदा बीमारियों तथा कीटों से पूरी तरह मुक्त होनी चाहिए और इसका पी.एच. मान 7.5 से 7.8 तक होना चाहिए।
मृदा परीक्षण यानि मिट्टी की जाँच करायें किसी भी फसल से बंपर पैदावार लें
मशरूम उत्पादन में उपयोगी आवरण मृदा कैसे तैयार की जाती है?
भारत में निम्न लिखित सामग्री से आवरण मृदा को तैयार किया जाता है-
1. गोबर की खाद (दो साल पुरानी) + बगीचे की मिट्टी 3ः1 के रेसियो में मिलाकर।
2. गोबर की खाद (दो साल पुरानी) + स्पेन्ट कम्पोस्ट 1ः1 के रेसियो में मिलाकर।
3. गोबर की खाद (दो साल पुरानी) + बगीचे की मिट्टी 2ः1 के रेसियो में मिलाकर।
आवरण मृदा को कैसे शोधित करें?
एक निर्धारित मात्रा में मिश्रित केसिंग स्वायल को फॉर्मेलीन नामक रसायन से शोधित किया जाता है। आवरण मृदा के मिश्रण को किसी पक्के फर्श में ढेर लगाकर, उसमें 4 प्रतिशत फॉर्मेलीन का घोल पानी में बनाकर अच्छी तरह मिला कर किसी पॉलिथीन से ढक देना चाहिए।
लगभग 24 घण्टे बाद ढकी गयी पॉलिथीन को हटा दें और केसिंग स्वायल को गंध रहित करने के लिए 3 से 4 दिन के लिए छोड़ दें। इस दौरान केसिंग स्वायल को उलट- पलट कर पूरी तरह से गंधहीन कर लें।
बटन मशरूम उत्पादन में आवरण मृदा का प्रयोग
बटन मशरूम उत्पादन में आवरण मृदा का प्रयोग करने के लिए कवकजाल युक्त कम्पोस्ट के ऊपर लगभग 4 से.मी. की परत बिछानी चाहिए। इस परत के ऊपर 2 प्रतिशत फॉर्मेलीन घोल का छिड़काव कर दें।
इस दौरान फसल कक्ष का तापमान 15०C से 18०C तथा आर्द्रता 80 से 85 प्रतिशत कर देना उचित रहता है। इसके साथ ही फसल कक्ष में वायु संचार का समुचित प्रबंधन करना भी आवश्यक होता है। आवरण मृदा के ऊपर दिन में 2 बार तक हल्के पानी का छिड़काव भी करना चाहिए।
बटन मशरूम की फसल तुड़ाई किस प्रकार करें?
कम्पोस्ट लगे कवकजाल को आवरण मिट्टी से ढकने के 12 से 18 दिनों में मशरूम निकलने लगते हैं। जिसके बाद आने वाले 50 से 60 दिनों तक मशरूम निकने का क्रम चलता रहता है।
दिन में 1 या 2 बार मशरूम की टोपी खुलने से पहले (1 से 1.5 इंच की परिधि वाले) मशरूम हो अंगुलियों की सहायता से ऐंठकर किसी टब या टोकरी में निकाल लेना चाहिए।
मशरूम पूरी तरह से खुल जाने व उसकी छतरी बन जाने पर मशरूम की गुणवत्ता और उसका बाजार मूल्य दोनों ही कम हो जाते हैं। इस लिए समय पर मशरूम की चुनाई यानि तुड़ाई कर लेनी चाहिए।
100 कि.ग्रा. कम्पोस्ट में कितनी पैदावार मिलती है?
दीर्घावधि विधि द्वारा निर्मित प्रति 100 कि.ग्रा. कम्पोस्ट से औसत 12 से 14 कि.ग्रा. बटन मशरूम का उत्पादन होता है। वही इतनी ही मात्रा के पास्चुरीकृत कम्पोस्ट से औसत 18 से 20 कि.ग्रा. तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
मशरूम का बाजार विपणन कैसे करें?
बटन मशरूम को आमतौर पर फ्रेस ही प्रयोग किया जाता है। लोग मशरूम की बहुत सारी रेसिपी बनाकर खाते हैं। इसलिए चुने गये बटन मशरूम को साफ पानी में धोकर 250 ग्राम, 500 ग्राम व इससे बड़ी प्लास्टिक की पैकिंग में पैक कर बाजार में बेचा जाता है।
रिटेल मार्केट में 200 ग्राम मशरूम का पैकेट 40 रूपये में बिकता है। इस हिसाब से 1 कि.ग्रा. मशरूम की रिटेल कीमत 200 रूपया तक होती है।
इस प्रकार से पैक किये गये बटन मशरूम को फ्रिजर का प्रयोग कर 8 से 10 दिन तक सुरक्षित रखा जा सकता है।
आप अपनी लागत का मूल्यांकन कर अच्छे मुनाफे के साथ बटन मशरूम को होलसेल मार्केट में भी बेच सकते हैं।
इसके अतिरिक्त बटन मशरूम को मूल्यवर्धित करने के लिए विभिन्न उत्पादन जैसे मशरूम का अचार, मशरूम का पाउडर, ड्राई मशरूम तथा विनेगर मशरूम बनाकर भी बाजार में अच्छे मुनाफे के साथ बेचा जा सकता है। लेकिन इसके लिए आपको मशरूम से मूल्यवर्धित उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण लेना होगा।
दोस्तों, मशरूम की खेती को प्रजातियों, मौसम व फसल चक्र के अनुसार आप पूरे वर्षभर कर सकते हैं। एक ही प्रकार के मशरूम की खेती करने से बीमारियों और कीटों का प्रकोप होने की सम्भावनायें बड़ जाती है। इसलिए एक ही प्रजाति का मशरूम उगाने के बजाय अलग-अलग प्रजाति के मशरूम का फसल चक्र अपनाते हुये मशरूम उत्पादन कार्य करना अच्छा रहता है।
तो दोस्तों आपको “बटन मशरूम की वैज्ञानिक खेती ” के बारे में दी गयी यह जानकारी कैसी लगी हमें कमेंट बॉक्स में लिखकर जरूर बताईये।
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