कीवी फल की खेती कैसे करें (पूरी जानकारी हिन्दी में) | How to Cultivate Kiwi Fruit (Complete Information in Hindi)

Table of Contents

दोस्तों नमस्कार!

इस आलेख में हम आपको कीवी फल की खेती से सम्बंधित सम्पूर्ण जानकारी प्रदान करेंगे। आप हर बात को आसानी से समझ सकें, इसलिए आलेख में कीवी उत्पादन की आधुनिक वैज्ञानिक तकनीक को आसान भाषा में बताया गया है।

अपनी रूचि के अनुसार प्रत्येक बिन्दु में दी गयी जानकारी को ऊपर दिये गये Table of Contents के लिंक पर क्लिक कर आप सीधे ही पढ़ सकते हैं।

कीवी फल का परिचय

कीवी फल या वैज्ञानिक नाम एक्टीनीडिया डेलीसिओसा (Actinidia deliciosa) या चायनीज गूसबेरी एक हल्का भूरा, रोएदार और बेलन के आकार का फल है, जो दिखने में कुछ-कुछ चीकू फल जैसा दिखता है।

कीवी के फल का वजन 40 से 50 ग्राम तक होता है। कीवी के अंदर का गूदा हरे रंग का होता है, जिसमें काले रंग के छोटे-छोटे बीज होते हैं।

आज दुनियाँ भर खाये जाने वाला कीवी फल मूल रूप से चीन से आया हुआ है। आज भी दुनियाँ भर में होने वाले कुल कीवी उत्पादन का लगभग 56 प्रतिशत अकेले चीन द्वारा पैदा किया जाता है। लेकिन कीवी का सबसे अधिक व्यावसायिक उत्पादन न्यूजीलैंड द्वारा किया जाता है।

आज भारत में उत्तराखण्ड, हिमांचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, नागालेंड, मिजोरम आदि पहाड़ी राज्यों में भी कीवी का उत्पादन होने लगा है, जिससे किसान अच्छा मुनाफा प्राप्त कर रहे हैं।

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कीवी में कौन- कौन से पोषक तत्व पाये जाते हैं?

कीवी में प्रचुर मात्रा में विटामिन सी के साथ ही विटामिन ई, विटामिन के, कार्बोहाइड्रेट, पोटैशियम, कॉपर, कैल्शियम, मैंग्नीशियम, फॉसफोरस, फोलेट, ल्यूटिन, जेक्सान्थिन, बीटा कैरोटीन, एंटी ऑक्सीडेंट और फाइबर पाया जाता है।  

अपने इन्ही बेमिशाल गुणों के कारण ही कीवी को दुनियाँ भर में पसंद किया जाता है।

कीवी उत्पादन के लिए कैसी जलवायु होनी चाहिए?

वैसे तो हर प्रकार की भौगोलिक स्थिति में कीवी उगाया जा सकता है। किन्तु व्यावसायिक उत्पादन के लिए समुद्र सतह से 600 से 1500 मीटर की ऊँचाई को कीवी की पौदावार के लिए उपयुक्त माना जाता है। लेकिन कुछ खास परिस्थितियों में कीवी की खेती 2000 मीटर की ऊँचाई तक की जा सकती है।

औसत वर्षा की जरूरत की बात की जाय तो कीवी की फसल के लिए 130 से.मी. से 210 से.मी. तक औसत वर्षा और 35 डिग्री तक अधिकतम तापमान की आवश्यकता होती है।

कीवी के पेड़ों की अच्छी बड़वार और अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए साल भर इसकी जड़ों में उचित नमी बनाये रखने की आवश्यकता होती है।

कीवी की फसल किन जगहों पर नहीं लगानी चाहिए?

वह स्थान जहाँ बहुत तेज हवायें चलती हो, सामान्य तापमान 35 डिग्री से अधिक रहता हो, पाले का अत्यधिक प्रभाव हो और फूल और फल लगते समय बहुत कम तापमान रहता हो ऐसे स्थानों में कीवी की बागवानी नहीं करनी चाहिए।

इन सभी परिस्थितियों को कीवी उत्पादन के लिए सही नहीं जाता है।

कीवी उत्पादन के लिए किस प्रकार की मिट्टी को अच्छा माना जाता है?

दोमट और हल्की रेतीली मिट्टी जो गहरे भूरे रंग व कार्बनिक पदार्थों से भरपूर हो और जिसका चभ् मान 7.3 से कम हो ऐसी मिट्टी को कीवी उत्पादन के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। आप अपनी भूमि में आवश्यक मृदा सुधार के बाद कीवी उगा सकते हैं।

कीवी लगाने से पूर्व अपने खेतों के मृदा स्वास्थ्य की सही जानकारी, मिट्टी का प्रकार, मिट्टी में उपलब्ध पोषक तत्वों की स्थिति को जानने के लिए खेतों की मिट्टी का परीक्षण कराना जरूरी होता है। इससे समय पर फसल लगाने से पूर्व आवश्यक सुधार किये जा सकते हैं।

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कीवी का बागीचा लगाने के लिए सबसे अच्छा मौसम और समय कौन सा है?

15 नवम्बर से 15 फरवरी के बीच का समय जब मौसम में अच्छी ठंड हो और पतझड़ अपने चरम पर हो यह समय कीवी के बागान लगाने के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है।

कीवी उत्पादन के लिए मुख्य प्रजातियां कौन सी हैं?

  1. एबट
  2. एलिसन
  3. ब्रूनो
  4. हेवर्ड
  5. मोंटी
  6. तुमोरी
  7. रेंड कीवी

कीवी की प्रमुख प्रजातियों की विशेषता क्या है?

एबट प्रजाति की विशेषताः

इस प्रजाति में कीवी का फल मध्यम आकार का होता है, जिसका वजन औसत 40 से 50 ग्राम तक होता है। यह कीवी की अगेती किस्म यानि जल्दी तैयार होने वाली प्रजाति है।

एलिसल प्रजाति की विशेषताः

कीवी की इस प्रजाति के फल अन्य के मुकाबले लम्बे और पतले होते हैं। इसके फल में अन्य प्रजातियों के मुकाबले थोड़ा अधिक खटास होती है।

ब्रूनो प्रजाति की विषेशताः

गहरा भूरा रंग और मध्यम आकार इस प्रजाति की प्रमुख विशेषता है। इस प्रजाति को कम तापमान की जरूरत होती है। इसके फल में अम्लता कम होने के कारण मिठास थोड़ा अधिक होती है।

हेवर्ड प्रजाति की विशेषताः

अन्य प्रजातियों के मुकाबले इसका फल दिखने में ज्यादा आर्कषक होता है। इस प्रजाति के फल को अधिक समय तक स्टोर किया जा सकता है। इसके फल में केवल 14 प्रतिशत घुलनशील शर्करा होती है।

उत्पादन की दृष्टि से ऊँचाई वाले पर्वतीय क्षेत्रों इस प्रजाति के लिए सबसे अच्छे माने जाते हैं। हेवर्ड प्रजाति के 5 से 7 वर्ष के एक पेड़ से औसत 50 से 55 किलोग्राम तक उत्पादन प्राप्त होता है।

मोंटी प्रजाति की विशेषताः

इस प्रजाति की कीवी देर से फलती है लेकिन इसे पकने में कम समय लगता है। इसके फल में 12 से 12.5 प्रतिशत तक घुलनशील शर्करा होती है। फल का आकार मध्यम और वजन 40 से 50 ग्राम तक होता है।

तुमोरी प्रजाति की विशेषताः

यह एक नर पौधा है, इसका प्रयोग परागण के लिए किसी भी प्रकार की मादा प्रजाति के साथ लगाकर फल उत्पादन के लिए किया जाता है। इसके फूल गुच्छेदार व दिखने में काफी मनमोहक होते हैं।

रेंड कीवी प्रजाति की विशेषताः

लाल रंग के फलों वाली इस प्रजाति के फलों में रोये नहीं पाये जाते हैं। इस प्रजाति में भी नर व मादा पौधे अलग-अलग होते हैं।

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कीवी के पौधों को कैसे लगायें?

कीवी के बाग के लिए स्थान चयन के बाद 5Mx5M की दूरी में 1Mx1Mx1M आकार के गड्डे खोदने चाहिए। इन गड़्डों में 1 तिहाही भाग गोबर की सड़ी खाद, 1 किलोग्राम नीम की खली व 20 ग्राम थीमेट 10-G को मिट्टी में मिलाकर भरना चाहिए। इसके बाद पौधों की अच्छे से रोपाई कर पानी देना चाहिए।

चूंकि कीवी में नर और मादा पौधे अलग- अलग होते हैं और अच्छे फल उत्पादन व परागण के लिए दोनों का होना जरूरी है। इसलिए पौध रोपण के समय नर और मादा पौधों का सही अनुपात होना आवश्यक है। मानक के अनुसार 6 से 8 मादा पौधों के बीच में 1 नर पौधा लगाया जाना चाहिए।

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कीवी फल के पौधे कैसे बनाये जाते हैं?

कीवी में पौधों के प्रसार के लिए निम्न तीन प्रकार की विधियों कटिंग, ग्राफ्टिंग और लेयरिंग का प्रयोग किया जाता है-

कटिंग द्वारा कीवी के पौधे बनाना

कटिंग द्वारा कीवी के पौधे तैयार करने के लिए जिस शाखा का प्रयोग किया जाता है वह कम से कम 1 साल पुरानी होनी चाहिए। एक लम्बी एवं स्वस्थ शाखा 15 से 20 से.मी. लम्बाई की कटिंगें बनानी चाहिए। कटिंग को इस प्रकार से काटें की उसके दोनों मुख कलम जैसे बन जायें।

अब उक्त प्रकार से तैयार कटिंग के एक छोर को 1000 PPM IBA नामक रूट हार्मोन में 1 घण्टा डुबाकर अच्छे से तैयार क्यारियों में लाइन में लगाना चाहिए। इस प्रकार से कटिंग से पौधे तैयार करने के लिए जनवरी माह का समय उपयुक्त होता है। इस विधि से तैयार पौधों को अगले वर्ष लगाया जा सकता है।

ग्राफ्टिंग द्वारा कीवी के पौधे बनाना

इस तकनीक में एक कम से कम 1 वर्ष पुराने बीजू पौधे में जमीन से 15 से 20 से.मी. ऊपर काटकर ग्राफ्टिंग की जाती है या अच्छी प्रजाति का बट बाँध दिया जाता है। इसमें टंग और स्लाइस विधि द्वारा ग्राफ लगाया जाता है।

अच्छे अंकुरण और ग्राफ्टिंग के लिए अच्छा रूट स्टॉक प्राप्त करने के लिए कीवी के बीज को बोने से पूर्व 30 PPM GA-3 (जिब्रेलिक एसिड-3) हार्मोन के घोल में 24 घण्टा भिगोकर नर्सरी हेतु बीज बुवाई करनी चाहिए।

लेयरिंग (एयर लेयर तकनीक) द्वारा कीवी के पौधे बनाना

इस विधि को हिन्दी में गोटी बाँधना या गोटी विधि कहा जाता है। लेयरिंग विधि से कीवी के पौध बनाने के लिए कम से कम 1 साल पुरानी शाखाओं का चुनाव करना चाहिए।

इस प्रकार चुनी गयी शाखा के चारों ओर गोलाई में 1 इंच चौड़ी छाल को किसी ब्लेड या टूल की मदद से निकाल लिया जाता है। जिसमें पतली प्लास्टिक सीट की मदद से इस छिले गये स्थान पर मौस या सफैगनम घास या गीली मिट्टी से अच्छी तरह बाँध दिया जाता है।  

लगभग 30 से 45 दिनों के भीतर उस बाँधे गये स्थान पर जड़ें निकलने लगती हैं। जिसके बाद इस जड़ वाले भाग को मुख्य शाखा से काटकर किसी अन्य स्थान पर गया दिया जाता है। इस प्रकार कुछ ही दिनों में नये पौधे तैयार हो जाते हैं।

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कीवी की फसल में खाद और उर्वरकों का प्रबंधन किस प्रकार करें?

कीवी के बगीचों में फसल की अच्छी ग्रोथ और उत्पादन के लिए अन्य फसलों की तरह ही समय- समय पर उचित मात्रा में खाद एवं उर्वरकों की आवश्कता होती है। सुरू के 2 से 3 वर्षों में कीवी के पौधों को 30 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद या कम्पोस्ट, 0.5 किलोग्राम छच्ज्ञ (120ः60ः60 के अनुपात में) प्रत्येक पौधे को देना चाहिए।

इस प्रकार पौधे की वृद्धि के साथ- साथ खाद की मात्रा को भी बढ़ाया जाता है। एक पूर्ण युवा पौधे को 50 से 60 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद या कम्पोस्ट, 0.7 किलोग्राम नाइट्रोजन, 0.4 किलोग्राम फास्फोरस तथा 0.7 किलोग्राम पोटाश देना चाहिए।

चूंकि कीवी की फसल खाद और उर्वरकों के उपयोग के लिए बहुत ही संवेदनशील होती है, इसलिए इसकी खेती शुरू करने से पहले कम से कम एक बार  मिट्टी की जांच आवश्यक रूप से कराने की सलाह दी जाती है। जिसके आधार पर आप मिट्टी की उर्वरता और उत्पादकता की पहचान कर सकें। आवश्यक खाद और उर्वरकों को मिट्टी के साथ अच्छी तरह से मिलाकर देना चाहिए।

कीवी के बाग में सिंचाई कैसे करें?

कीवी की फसल को भी अन्य फसलों की तरह ही नियमित अंतराल पर पानी आवश्यकता होती है। विशेष रूप से गर्मी के मौसम और सूखे की स्थिति में सिंचाई करना अनिवार्य होता है।

कीवी की फसल में सिंचाई के लिए 10 से 15 दिनों के अंतराल पर आवश्यकता के अनुसार सिंचाई करना फायदेमंद होता है।

सिंचाई की यह परम्परा फसल के स्वास्थ्य, फल को अच्छा आकार देने, पौधों की उचित बड़वार के साथ ही उच्च गुणवत्ता का अधिकतम उत्पादन प्राप्त करने में सहायक होता है।

कीवी के पौधों व फसल को तेज हवा, पाले आदि से कैसे सुरक्षित रखें?

कीवी का उत्पादन अधिकतर ठंडे क्षेत्रों में किया जाता है। चूंकि कीवी एक बेलदार फसल है जिसके कारण अत्यधिक ठंड की स्थिति और तेज हवाओं से इसे सुरक्षा प्रदान करना आवश्यक है। यदि सुरक्षा प्रबंध नहीं किये गये तो ऐसे में फल उत्पादन प्रभावित होने की सम्भावना होती है।

कीवी के पौधों की ट्रेनिंग या स्टेकिंग कैसे करें?

किसी के पौधे बेलदार होते हैं, इसकी लताओं को बढ़ने के साथ-साथ सहारे की आवश्यकता होती है। अगर आप व्यावसायिक स्तर पर कीवी उत्पादन करने की सोच रहे हैं, तो यह आवश्यक है कि आप बेलों हेतु ट्रेनिंग या स्टेकिंग का प्रबंध जरूर करें।

यह इतने मजबूत तो होने चाहिए कि तेज हवा के झौकों को भी सम्भाल सकें और कीवी की बेलों को भी सम्भाले रखें। इसलिए एक मजबूत ढाँचे का ही प्रयोग करना उचित रहता है।

कीवी में स्टेकिंग के लिए आमतौर पर दो विधियों का प्रयोग किया जाता है- (1) टी-बार विधि और (2) परगोला विधि। आईयें जानते हैं कि स्टेकिंग की इन विधियों को कैसे स्तेमाल किया जाता है-

कीवी स्टेकिंग की टी-बार विधि

कीवी स्टेकिंग की टी-बार विधि में मजबूत लोहे के ऐंगिल या खम्भों के एक सिरे में लगभग 1 मीटर के तिरछे ऐंगिल वेल्ड कर दिये जाते हैं। इस प्रकार से वेल्ड किये गये खम्भों को 2 से 3 मीटर की दूरी में कौकरीट की मदद से फिक्स कर दिया जाता है।

इन खम्भों में मजबूत तारों को लगाकर एक दूसरे से जोड़ दिया जाता है, ताकि कीवी की बेलें आराम से फैल सकें। इस विधि में प्रथम वर्ष में पौधे की केवल एक शाखा को ही तारों तक बढ़ने दिया जाता है, जो एक मुख्य तना बनती है।

दूसरे वर्ष इस शाखा से निकली अन्य दो शाखाओं को दोनों ओर बीच वाली तार में बाँध कर फैलने दिया जाता है, यह उसकी अन्य दो मुख्य उपशाखायें बनती हैं।

अगले वर्ष फिर उन उपशाखाओं से निकली शाखाओं को बाहरी तारों में फैलाया जाता है। इस प्रकार स्टेकिंग करने से बेलों का वजन समान रूप से विभाजित होकर मजबूती से खम्भों में फैलता है, साथ ही पौधों की देखरेख करने में भी सहायता होती है।

कीवी स्टेकिंग की परगोला विधि

कीवी स्टेकिंग की परगोला विधि में लगभग 1 मीटर व्यास वाले लोहे के छल्लों को लगभग 8 फीट ऊँचाई वाले लोहे के खम्भों में वेल्ड कर दिया जाता है। इन खम्भों को भी जमीन में 2 से 3 मीटर की दूरी पर फिक्स करके खड़ा कर दिया जाता है।

इस प्रकार खम्भों में लगे छल्लों तक कीवी के बेलदार तने को सिंगल स्टेम में ही बढ़ने दिया जाता है। उसके बाद के वर्षों में अन्य शाखाओं को इन छल्लों में चारों ओर फैलाया जाता है।

पौधों की उचित वानस्पिक बढ़वार के लिए कीवी के पौधों की आवश्यक कटिंग और प्रूनिग की जानी चाहिए। इससे ग्रेडेड फल उत्पादन में भी सहायता मिलती है।

कीवी की फसल में पुष्प परागण, फल और उपज

अच्छी देखरेख और अनुकूल जलवायु में कीवी 3 से 4 वर्षों में फूलने-फलने लगता है। कीवी में परागण वायुवीय व मधुमक्खी के माध्यम से होता है। किसानों को सलाह दी जाती है कि वह फुलाई के समय किसी भी प्रकार के कीटनाशकों का प्रयोग न करें।

सामान्य स्थिति में पूर्ण रूप से विकसित 5 से 7 वर्ष के एक पौधे से लगभग 50 से 60 किलोग्राम तक कीवी के फल का उत्पादन प्राप्त होती है। इस प्रकार 1 हेक्टेयर में औसत 20 से 25 टन तक कीवी फल का उत्पादन लिया जा सकता है।

कीवी के फलों की तुड़ाई कब की जाती है?

कीवी के फलों की तुड़ाई यानि फसल कटाई का कार्य अक्टूबर से दिसम्बर माह के मध्य किया जाता है। फलों को पकने से पूर्व ही ठोस अवस्था में बेलों से तोड़ लेना चाहिए, जिसके बाद तोड़े गये फलों को आकार के अनुसार ग्रेड करना चाहिए। इससे आपको फलों की अच्छी कीमत मिल सकती है।

कीवी को स्टोर करने के लिए ठंडे और सूखे भंडारण कक्ष का ही प्रयोग किया जाना चाहिए। ऐसे स्थान जहाँ नमी और सीलन हो इस प्रकार के कमरों में कीवी के फलों को नहीं रखना चाहिए, इससे आपके फल खराब हो सकते हैं।

कीवी के फलों का बाजार विपणन किस प्रकार करें?

कीवी फल अपनी विशिष्टता के कारण जल्दी खराब नहीं होते हैं। जिन्हें बाजार में भेजने से पूर्व रोये हटाने के बाद ग्रेड कर पैंक किया जाता है। इस प्रकार से पैक किये गये कीवी फलों को देश भर में तथा देश से बाहर के बाजारों में भी विक्रय हेतु भेजा जा सकता है।

ठोस रूप में पैक किये गये फलों को खाने योग्य मुलायम अवस्था में आने में लगभग 15 दिनों का समय लगता है। इस लिए इस अवधि में विपणन कार्य को आसानी से किया जा सकता है।

आप चाहें तो कीवी के फलों को प्रोसेस कर उच्च गुणवत्ता का जूस, जैम, चटनी, मुरब्बा, कैंडी आदि के रूप में बेल्यू ऐड कर उच्च कीमतें प्राप्त कर सकते हैं।

कीवी फल का उत्पादन व्यवसाय अपनी अनेकों विशेषता और गुणों के कारण किसानों के लिए कृषि से आय अर्जित करने का एक अच्छा विकल्प बन सकता है। कीवी की फसल के साथ ही अन्य प्रकार की सब्जी फसलों की खेती कर अतिरिक्त आय भी प्राप्त की जा सकती है।

कीवी की वैज्ञानिक खेती से सम्बंधित इस जानकारी को आपके लिए कृषि उद्यमी एवं फूड प्रोसेसिंग विशेषज्ञ पंकज सिंह बिष्ट द्वारा तैयार किया गया है। पंकज जी उत्तराखण्ड के नैनीताल जनपद में धारी विकासखण्ड के निवासी हैं और वही पर स्थित ‘‘अलख’’ स्वायत्त सहकारिता में मुख्य कार्यकारी अधिकारी भी हैं।

तो दोस्तों आपको “कीवी फल की खेती” के बारे में दी गयी यह जानकारी कैसी लगी हमें कमेंट बॉक्स में लिखकर जरूर बताईये।

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आलेख:

baatpahaadki.com

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