लहसुन की खेती के साथ ही इन उत्पादों को बनाकर बनें आत्मनिर्भर लखपति किसान | Lahsun ki kheti ke sath hee in utpadon ko bana kar banein aatmanirbhar Lakhpati Kisaan

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युवा और जोशीले किसान भाई-बहिनों को नमस्कार!

लहसुन बुवाई का समय आने वाला है और आज का यह लेख लहसुन की खेती पर आधारित है। जिसमें हम आपको केवल लहसुन उत्पादन की ही जानकारी नहीं देंगे, वरन यह भी बतायेंगे कि आप ऐसा क्या चमत्कार करें कि दूसरे लोगों की अपेक्षा आपके लहसुन को अच्छे दाम मिलें।

सीधे शब्दों में कहें तो आगे कुछ ऐसी छोटी- छोटी मगर आपके लिए काम की बातें बताई जा रही हैं। जिससे आप लहसुन से मोटा मुनाफा कमा सकते हैं इसके लिए आप जैसे स्मार्ट किसान को अपने खेती किसानी के तरीके में कुछ छोटे- छोटे बदलाव लाने होंगे।

मैं आपको अपने परिवार का हिस्सा मानता हूँ। मेरा उद्देश्य रहता है कि मेरे जो किसान भाई इतनी हाड़तोड़ मेहनत करके, अपने खेतों में जो उपज पैदा करते हैं उसका उन्हें अच्छे से अच्छा मूल्य मिले। उनका मुनाफा ज्यादा हो, वह अब फसल उत्पादन के साथ ही अपनी उपज का मूल्यवर्धन भी करना सीखें।

तो आईयें जानते हैं कि हम लहसुन की खेती  के साथ ही लहसुन के उत्पादों  को बनाकर आत्मनिर्भर लखपति किसान कैसे बनें। इस विषय पर पूरी एवं प्रमाणिक जानकारी प्राप्त करने लिए हमारा यह एक ही आपके बहुत काम आने वाला है। इसके लिए लेख को अंत तक जरूर पढ़ियेगा और हमें कमेंट बॉक्स में कमेंट करना न भूलियेगा कि आपको यह लेख कैसा लगा।

मैं आपको आगे दोस्तो कहकर संबोधित करूँगा। मुझे लगता है कि यह ‘‘दोस्त’’ शब्द मुझे आपके करीब ले आता है और यह हमको आपस में एक तरह से जोड़ सा देता है।

लहसुन को तो सारा जहाँ जानता है। लहसुन एक उच्चकोटि का नायाब और बहुत ही गुणकारी मसाला है। भारतीय शाही व्यंजनों  हो या फिर नमक के साथ रोटी खाने वाले मेरे किसान भाई की रसोई, लहसुन आपको हर घर में मिल जायेगा।

दोस्तो लहसुन से बहुत ही स्वादिष्ट अचार, चटनी व कैंचअप के साथ ही और भी कई उत्पाद बनाये जा सकते हैं। जिनका लहसुन की अपेक्षा बाजार भाव कई गुना अधिक होता है। जरा सोच कर देखिये कि आप जिस लहसुन को उगाते हैं, अगर आप ही उसे प्रोसेस कर उत्पाद बनाने लगें और आप ही उसे बाजार में बेचें तो आपको कितना फायदा हो सकता है।

लहसुन की खेती के लिए अनुकूल जलवायुः

दोस्तो खेती किसानी में अनुकूल जलवायु काफी मायने रखती है। जिसके कारण अच्छे परिणाम मिलने की संभावनायें कई गुना बड़ जाती हैं। यह बात लहसुन की खेती पर भी लागू होती है। भारत में लहसुन की खेती शरद ऋतु में की जाती है।

यह इस लिए भी आवश्यक है क्योंकि लहसुन की गाँठ  को पूर्ण रूप से बनते समय पर्याप्त तापमान एवं लम्बी प्रकार अवधि की जरूरत होती है। गाँठ बनते समय पत्तियों का विकास रूक जाता है। लहसुन के अच्छे उत्पादन के लिए 13 से 24 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान का होना अच्छा होता है।

लहसुन की खेती के लिए अगर मिट्टी की बात की जाय तो हर प्रकार की मिट्टी में लहसुन की खेती की जा सकती है। बलुई दोमट तथा दोमट मिट्टी में भी लहसुन की खेती की जा सकती है।

लहसुन की उन्नतशील किस्मेंः

देखा जाय तो भारत में लहसुन की कई किस्में उपलब्ध हैं। जिन्हें अलग- अलग कृषि अनुसंधान केन्द्रों तथा बीज निर्माता कम्पनियों द्वारा विकसित किया गया है। हम यहाँ कुछ ऐसी किस्मों के बारे में बता रहें हैं जिन्हें देश के अग्रणी कृषि विश्वविद्यालय गोबिन्द बल्लभ पन्त कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय पन्तनगर के कृषि वैज्ञानिकों द्वारा सुझाया गया है।

  1. यमुना सफेद जी 1ः

    इस किस्म के लहसुन का कंद सफेद रंग का होता है। इस प्रजाति के लहसुन का औसत उत्पादन लगभग 14 टन प्रति हैक्टर तक है।

  2. यमुना सफेद 2ः

    इस किस्त के लहसुन का कंद चमकदार सफेद रंग का होता है। जिसका औसत उत्पादन लगभग 15 से 20 टन प्रति हैक्टर तक होता है।

  3. पंत लोहितः

    लहसुन की यह किस्म परपल ब्लाच (बैंगनी धब्बा) नामक रोग के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली है। इस किस्म की परिपक्वता अवधि 175 दिन तथा औसत उत्पादन लगभग 12 से 13 टन प्रति हैक्टर है।

  4. एग्रीफाउण्ड सफेदः

    लहसुन की यह किस्म भी परपल ब्लाच (बैंगनी धब्बा) नामक रोग के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली है। इस किस्म का औसत उत्पादन लगभग 13 से 15 टन प्रति हैक्टर है।

  5. एग्रीफाउण्ड पार्वतीः

    इस किस्म का औसत उत्पादन लगभग 18 से 22 टन प्रति हैक्टर है।

लहसुन की बुवाई का समयः

दोस्तो वैसे तो भारत में लहसुन की बुवाई लगभग हर राज्य में की जाती है। लेकिन भारत के उत्तरी मैदानी व पर्वतीय दोनों ही क्षेत्रों में लहसुन का उत्पादन व्यावसायिक रूप में किया जाता है। बुवाई के लिए लहसुन की स्वस्थ गाँठ से कलियों को अलग कर लिया जाता है जिन्हें जवा भी कहा जाता है।

मैदानी भागों में अक्टूबर से नवम्बर तथा पहाड़ी इलाकों में सितम्बर मध्य से अक्टूबर अंत तक लहसुन की बुवाई की जाती है। अगर प्रति हैक्टर (प्रति 50 नाली) बीज की खपत या आवश्यकता की बात करें तो 500 से 700 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है।

निराई गुड़ाई में आसानी हो तथा लहसुन की फसल अच्छी तरह विकसित हो इसके लिए लहसुन की बुवाई को लाईन (पंक्ति) में करने की सलाह दी जाती है। इसके लिए लाईन से लाईन की दूरी 15 से.मी. और पौधे से पौधे की दूरी 7.5 से.मी. में बुवाई की जानी चाहिए।

लहसुन की फसल में खाद एवं उर्वरकों का प्रयोगः

अन्य फसलों की ही भाँती लहसुन की फसल को भी खाद एवं उर्वरकों की जरूरत होती है। आज जैविक उत्पादों की बाजार माँग काफी रहती है। यदि आप जैविक विधि से खेती करते हैं तो आपको 25 से 30 टन प्रति हैक्टर गोबर की ठीक से सड़ी खाद एवं कम्पोस्ट का प्रयोग कर सकते हैं।

किसान जो उर्वरकों का प्रयोग करते हैं वह 100 से 125 किलोंग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फॉस्फोरस तथा 50 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टर की दर से कर सकते है। गोबर की खाद, कम्पोस्ट, फॉस्फोरस, पोटाश तथा एक तिहाई नाईट्रोजन को बुवाई से पूर्व खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिला देना चाहिए।

उक्त के अतिरिक्त नाईट्रोजन को दो बराबर भागों में बाँटकर बुवाई के 40 व 60 दिन में खड़ी फसल में टॉपड्रेसिंग के रूप में देना चाहिए।

लहसुन की फसल की निराई गुड़ाईः

फसल की निराई गुड़ाई फसल की अच्छी बढ़वार के लिए आवश्यक होने के साथ ही खरपतवार नियंत्रण के लिए जरूरी है। बुवाई के 5 से 7 सप्ताह में एक बार गुड़ाई जरूर कर लेनी चाहिए।

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लहसुन की फसल में सिंचाईः

दोस्तो लहसुन की फसल को बहुत अधिक मात्रा में पानी की जरूरत तो नहीं होती  किन्तु गाँठ बनते समय सिंचाई की जरूरत पड़ती है। यदि इस समय खेत में पर्याप्त मात्रा में नमी न हो तथा आप सिंचाई भी नहीं करेंगे तो ऐसे में लहसुन की गाँठें फटने लगेंगी। इसके परिणाम स्वरूप आपका उत्पादन प्रभावित होगा।

लहसुन को अपने पूरे फसल चक्र के दौरान 12 से 14 हल्की सिंचाई की अवश्यकता पड़ती है। इससे खेतों में नमी बनी रहती है तथा फसल की बढ़वार भी अच्छी होती है। किन्तु सलाह यह दी जाती है कि पहली सिंचाई बुवाई के 3 से 4 दिन बाद तथा अंतिम सिंचाई खुदाई करने से 7 दिन पूर्व जरूर की जानी चाहिए।

लहसुन की खुदाई एवं भंडारण विधिः

दोस्तो लहसुन की फसल पकने के कुछ संकेत हैं। अगर आपकी फसल में भी यदि यह संकेत दिखाई दें तो आप भी अपनी फसल की खुदाई कर सकते हैं। जब लहसुन की ऊपरी पत्तियाँ पीली पड़कर गिरने लगें तब समझियें की आपकी फसल खुदाई के लिए बिल्कुल तैयार है।

अमुमन लहसुन की फसल को तैयार होने में 5 से 6 माह तक का समय लगता है। खुदाई के बाद गाँठों को पत्तियों व डंठलों के साथ ही 3 से 4 दिन तक छाया में ठीक से सुखाना चाहिए। जब गाँठें ठीक से सूख जायें तब गाँठ के ऊपर 1 से 1.5 से.मी. डंठल छोड़कर ऊपरी भाग को काटकर अलग कर देना चाहिए। इस दौरान गाँठ में चिपकी मिट्टी को भी साफ कर दिया जाता है।

पहाड़ी इलाकों में जो लोग लम्बे समय तक लहसुन को भंडारित करते हैं वह, सूखी गाँठों से मिट्टी व जड़ों को साफ कर लहसुन को डंठल और पत्तियों के साथ ही बाँधकर किसी सूखे कमरे में अथवा घरों की छनों के सहारे टाँग देते हैं। जिसे जरूरत पड़ने पर उपयोग में लाया जाता है।

ठीक से सूखी गाँठों को किसी नायलॉन के बोरे में बंद कर सूखे स्थान पर ही भंडारण किया जाना चाहिए। सीलन अथवा नम स्थान पर भंडारण करने से लहसुन के खराब होने की प्रबल संभावनाऐं होती हैं।

लहसुन की फसल में रोग एवं कीट नियंत्रणः

1. बैंगनी धब्बा (परपल ब्लॉच):

लहसुन में यह रोग अल्टरनेरिया पोरी नामक फफूँद के कारण होता है। इसके कारण पत्तियों तथा तने में गुलाबी रंग के छोटे-छोटे धब्बे पड़ जाते हैं। कुछ समय में यह आँख के आकार के हो जाते हैं तथा इनका रंग बैंगनी हो जाता है।

रोकथाम के उपायः

इस रोग से बचाव के लिए मैंकोजेब नामक दवा की 2.5 ग्राम मात्रा को 1 लीटर पानी में घोल बनाकर 10 दिनों के अंतराल में फसल में छिड़कना चाहिए। छिडकाव के लिए दवा बनाते समय प्रति लीटर पानी में 1 मि.ली. ट्राइट्रोन अथवा सैन्डोविट नामक चिपचिपा पदार्थ मिलाना चाहिए, ताकि दवा पत्तियों और तनों में चिपक जाय।

2. झुलसा रोग (स्टैम्फीलियम ब्लाइट):

इस रोग में लहसुन के पौधे में पत्तियाँ एक तरफ पीली तथा दूसरी तरफ हरी रहती हैं।

रोकथाम के उपायः

यह रोग एक प्रकार की कवक के कारण होता है। इसकी रोकथाम के लिए मैंकोजेब नामक कवकनाशी का 2.5 ग्राम अथवा डिफेनोकोनाजोल 1 मि.ली. दवा को 1 लीटर पानी में धोलकर फसल में छिड़काव करना चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर यही प्रक्रिया 15 दिनों के बार फिर से दोहराई जा सकती है।

3. मृदुरोमिल फफूँदी (डाउनी मिल्डयू):

यह रोग पत्तियों में बैंगनी रोयेदार रूप में दिखाई देता है। कुछ समय बाद यह पत्तियाँ हरा रंग लिए पीली हो जाती हैं तथा सूखकर गिर जाती हैं।

रोकथाम के उपायः

मैंकोजेब दवा को प्रति लीटर पानी में 2.5 ग्राम घोल कर फसल में छिड़काव किया जाना चाहिए। यदि जरूरत पड़े तो 10 से 15 दिन के अंतर में फिर से छिड़काव किया जा सकता है।

4. लहसुन का विषाणु रोगः

इस रोग के प्रभाव के कारण लहसुन की पत्तियों में रंगबिरंगे चितकबर धब्बे पड़ने लगते हैं। बाद में यही धब्बे पूरी पत्ती में लम्बी धारियों के रूप में दिखाई देने लगते हैं। इसके परिणाम स्परूप पत्तियों में ऐंठन आ जाती हैं और इसके कारण उत्पादन भी प्रभावित होता है।

रोकथाम के उपायः

प्रथम दृष्टिया रोग से प्रभावित पौधे को उखाड़ कर जला देना चाहिए। इसके साथ ही प्रोफेनफॉस दवा की 1.5 मि.ली. मात्रा को 1 लीटर पानी की दर से घोलकर फसल में छिड़काव करने से इस रोग की रोकथाम की जा सकती है।

5. थ्रिप्स कीटः

पीले रंग के यह छोटे-छोटे कीड़े पत्तियों का रस चूस कर फसल को नुकसान पहुँचाते हैं। जिसके परिणाम स्परूप पत्तियों पर हल्के हरे रंग के लम्बे धब्बे दिखाई देते हैं। कुछ समय बाद यह धब्बे सफेद हो जाते हैं।

रोकथाम के उपायः

लहसुन की फसल में इस कीट के नियंत्रण हेतु इमिडाक्लोप्रिड की 0.3 मि.ली. मात्रा को प्रति लीटर पानी की दर से घोलकर 10 से 15 दिन के अंतर में छिड़काव करना चाहिए।

लहसुन का मूल्यवर्धन कैसे करें?

दोस्तों, जिन फसलों को हम सीधे बाजार में बेचकर मामूली मुनाफा ही प्राप्त कर पाते हैं और अपनी किस्मत का रोना रोते हैं। यदि लहसुन की फसल को हम मूल्य वर्धित कर बेचें तो कई गुना मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं।

लहसुन एक ऐसी मूल्यवान फसल की श्रेणी में आता है जिसके हम कई सारे उत्पाद बनाकर बाजार में बेच सकते हैं। इसके लिए आपको थोड़ी सी ट्रेनिंग तथा कुछ मशीनों के लिए निवेश करने की जरूरत पड़ती है। इसके बाद आप लहसुन का अचार, चटनी, लहसुन पेस्ट, छिला लहसुन, लहसुन पाउडर आदि उत्पाद बनाकर बाजार में बेच सकते हैं।

ऐसा करने से आपको अच्छी इंकम होना तय है। अगर आप लहसुन से विभिन्न प्रकार के उत्पाद बनाने सम्बंधित विधियों के बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं, तो हमें नीचे दिये गये कमैंट बॉक्स में लिखकर बताऐं।

तो दोस्तों आपको लहसुन की खेती  के बारे में दी गई यह जानकारी कैसी लगी हमें जरूर बताईये।

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आलेखः

पंकज सिंह बिष्ट

baatpahaadki.com

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