यह कहानी है मानव विकास की। उन पद चिन्हों की जो वक्त से साथ- साथ धुधले होते गये। और हो भी क्यों नहीं? हजारों, लाखों और शायद करोड़ों साल पहले शुरू हुई उस यात्रा के चिन्हों को आँखिर कोई कैसे सम्भाल के सकता है?

इंसानी विकास की इस लम्बी यात्रा की कहानी और हमारे वर्तमान और भविष्य की जड़ें धरती और समंदर के आगोश में कही अंदर गहराई में दफन हैं।  

अतीत की खोज

इंसानी सोच जब भी अपने वर्तमान और भविष्य के सवालों के जवाब खोजने का प्रयास करती है। तो यह सवाल और जिज्ञासा उसे अपने अतीत के पन्नों को पलटने को मजबूर कर देते हैं। आधुनिक विज्ञान की भाषा में इसे ही रिसर्च के नाम से जाना जाता है।

इंसानी सभ्यता आज अपने जिस चरम पर खड़ी है, और इंसान आधुनिक विकास की जिस अंधी दौड़ में दौड़ रहा है, उसका सायद ही कोई अंत हो। लेकिन हमारे अतीत के पन्ने तो कोई और ही कहानी कहते हैं।

मावन आज विज्ञान और आधुनिकता के नाम पर चाहे कितना ही इतरा ले। लेकिन इस सच्चाई को झुटला नहीं सकता कि उसने अभी तक जितना कुछ पाया है उससे कही अधिक खो दिया है।

इंसानी विकास और विनास में अंतर को समझने के लिए आपको अपने अतीत के उन पदचिन्हों से रूबरू होना पड़ेगा, जिनसे आप उत्तराखण्ड के एक छोटे से शहर भीमताल में मिल सकते हैं।

कुमाऊॅ के शहर भीमताल में लोक संस्कृति संग्रहालय की स्थापना

भीमताल शहर के मुख्य बाजार से कुछ ही मिनटों की दूरी पर भीमताल-भवाली मार्ग में एक ऐसा अनोखा संग्रहालय है। जिसमें करोड़ों साल पुराने जिवाश्मों से लेकर इंसानी विकास के हर उस काल की स्मृतियां हैं, जिनसे गुजर कर इंसान आधुनिक समय तक की आपनी यात्रा को पूरा कर सका है।

इस संग्रहालय का नाम लोक संस्कृति संग्रहालय है। इसकी स्थापना सन् 1983 में भारत के जानेमाने पुरातत्त्वविद और चित्रकार पद्मश्री डॉ. यशोधर मठपाल जी द्वारा की गयी। तब से आज तक इस संग्रहालय में हजारों ऐसी वस्तुयें जुड़ती गयी जो इंसानी विकास के प्रत्येक बदलते दौर की गवाह हैं।

पद्मश्री डॉ. यशोधर मठपाल लोक संस्कृति और कला के साधक

डॉ मठपाल का संपूर्ण जीवन इस लोक संस्कृति संग्रहालय को सजोने, लोक सांस्कृतिक शोध और कला की साधना के लिए समर्पित है। वह उम्र के इस पड़ाव में भी अपने दैनिक समय में से अधिकतम समय संग्रहालय की वस्तुओं को संजोने, चित्रकारी और शोध लेखन के कार्य में व्यतीत करते हैं।

अब डॉ यशोधर मठपाल जी की इस अनमोल धरोहर को बचाये रखने में उनके ज्येष्ठ पुत्र डॉ सुरेश मठपाल भी उनकी खूब मदद करते हैं।

लोक संस्कृति संग्रहालय के आकर्षक और पुरातात्विक संकलन

लोक संस्कृति संग्रहालय में प्रदर्शित वस्तुऐं और शोधकार्य को प्रागैतिहासिक, आद्यैतिहासिक और ऐतिहासिक काल खण्डों के अनुसार क्रमशः देखा जा सकता है। संग्रहालय की प्रचीनतम वस्तुओं में टेथीज समुद्र के 15 करोड़ वर्ष पुराने जीवाश्म हैं, जिससे हिमालय पर्वत के किसी समुद्र में हुई भू-गर्भीय हलचल से बनने के प्रमाण मिलते हैं।

इसके बाद वह 700 पाषाण उपकरण हैं जिन्हें लगभग 5 लाख वर्ष से लगभग 4 हजार वर्ष पूर्व तक इंसानों द्वारा बनाया और उपयोग किया गया था।

संग्रहालय में पाषाणकालीन गुफाचित्रों की कलात्मक अनुकृतियां भी हैं जिनसे उस वक्त के इंसान की जिन्दगी, दिनचर्या और प्रकृति के करीब होने का अंदाजा लगाया जा सकता है।

गुफाचित्रों की लगभग एक हजार रंगीन अनुकृतियां संग्रहालय की कलादीर्घा का प्रमुख आकर्षण हैं, जिन्हें पिछले 4 दशकों में देश के 400 से अधिक शिलाश्रयों और गुफाओं में जाकर जलरंगों से हस्तनिर्मित कागजों में अनुकृत किया गया है।

आद्यौतिहासिक और ऐतिहासिक कालों के शिल्प, ईटें, मृदमाण्ड, आठ पाषाण वीर स्तम्भ, दो दर्जन से अधिक प्राचीन कृषि उपकरण इस संग्रहालय में देखने को मिलते हैं।

अतीत और वर्तमान समय का प्रतिनिधित्व करती वस्तुओं में पाण्डुलिपियाँ, लघु पुस्तक चित्र, बहुमूल्य पुस्तकें, बाँस, रिंगाल, लकड़ी, पत्थर, लोहा, ताँबा व काँसे के बर्तन, वाद्य यंत्र, लोक देव प्रतिमाएँ, वस्त्र, विशाल झंडे, विवाह अलंकरण और हजारों पुराने सिक्के भी इस संग्रहायल में देखे जा सकते हैं। कुछ सिक्के तो 2 हजार वर्षों से भी प्राचीन हैं।

पर्वतीय समाज की वस्तुविनिमय प्रणाली में प्रयोग होने वाले विभिन्न प्रकार के मापक इस संग्रहालय की बहुमूल्य धरोहर हैं।

विलुप्त हो चुकी पारम्परिक कुमाऊँनी काष्ठ कला के नायाब नमूने व इनसे जुड़े चित्र, पारम्परिक कुमाऊँनी चित्रकला ऐपण के नायाब नमूनों को इस संग्रहालय में देखा जा सकता है।

लोक संस्कृति संग्रहालय में सजोई गयी प्रत्येक वस्तु मानव विकास की एक अनोखी कहानी को बयांन करती हैं।

लोक कला और संस्कृति का प्रसार एवं प्रशिक्षण

अब यह संग्रहालय केवल एक संग्रहालय न होकर लोक संस्कृति का एक केन्द्र बन गया है। यहाँ हर किसी के सीखने के लिए बहुत कुछ है। यहाँ शोधकर्ताओं, वैज्ञानिकों, समाज कार्य विशेषज्ञों, कला प्रेमियों, विद्यार्थियों और बच्चों के लिए समय-समय पर कार्यशालाओं एवं प्रर्दशनियों का आयोजन भी किया जाता है।

इसके साथ ही संग्रहालय देखने के इच्छुक व्यक्ति ग्रीष्म काल में प्रातः 10 से सायं 5 बजे तक और शीतकाल में प्रातः 11 से सायं 4 बजे तक संग्रहालय में आ सकते हैं।    

तो दोस्तों आपको “लोक संस्कृति संग्रहालय ” के बारे में दी गयी यह जानकारी कैसी लगी हमें कमेंट बॉक्स में लिखकर जरूर बताईये।

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आलेख:

baatpahaadki.com

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