पत्तागोभी की आधुनिक खेती

गोभीवर्गीय नकदी फसलों में पत्तागोभी का अपना एक स्थान है। यह लोगों के भोजन का प्रमुख अंग होने के अतिरिक्त किसानों की आय बढ़ाने में मुख्य भूमिका निभाती है। इसमें मुख्य रूप से कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, विटामिन-ए, विटामिन-सी, आयरन एवं कोलीन आदि पोशक तत्व भरपूर मात्रा में होते हैं। बंदगोभी की खेती सामान्य रूप से सर्दी, गर्मी और बरसात के मौसम में की जा सकती है।

पत्तागोभी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

पत्तागोभी मूल रूप से शीत ऋतु का पौधा है। इसकी खेती के लिए ठंडी व नम जलवायु की आवश्यकता होती है। शुष्क जलवायु में डंठल बड़े व फूल (हैड) छोटे आकार के हो जाते हैं। पत्तागोभी के बीज अंकुरण के लिए मिट्टी का तापमान 120 से 150 सेल्सियस तक सही होता है। इससे कम या अधिक तापमान होने पर पौधों की बढ़वार व विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। तापमान की कम आवश्यकता के कारण ही इसे सर्दियों में उगाया जाता है, लेकिन ठंडे व पहाड़ी क्षेत्रों में गर्मी व बरसात में भी पत्तागोभी की खेती की जा सकती है।

भूमि का चयन एवं खेत की तैयारी

पत्तागोभी की अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए उचित जल निकास के साथ मटियार या दोमट या मटियार दोमट मिट्टी अच्छा माना जाता है। अधिक अम्लीय मिट्टी पत्तागोभी की फसल के लिए अनुपयुक्त होती है। अतः भूमि का पी-एच मान 5.5 से 6.5 के मध्य होना चाहिए, तभी अच्छी पैदावार प्राप्त होती है।
यदि आपके खेत की मिट्टी अधिक अम्लीय है, तो आप उसमें 10 से 15 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर दर से चूने को उर्वरकों के साथ मिलाकर प्रयोग कर सकते हैं। इससे मिट्टी का पी-एच स्तर ठीक किया जा सकता है। पौध रोपण से पूर्व जुताई के समय गोबर की सड़ी हुई खाद मिलाकर मिट्टी को भुरभुरी कर लेना चाहिए। खेतों को हल, कुदाल या हैरो से समतल करके छोटी-छोटी क्यारियां बना लेनी चाहिए।

पौधशाला (नर्सरी) तैयार करना

पत्तागोभी की पौधशाला या नर्सरी बनाने के लिए 1 से 1.25 मीटर चौड़ी, 15 सें.मी. ऊंची व लगभग 7 से 10 मीटर लंबी क्यारियों की आवश्यकता होती है। आप अपनी जरूरत के अनुसार क्यारियों की संख्या को बढ़ा सकते हैं।
क्यारियों को तैयार कर उसमें कम्पोस्ट या गोबर की सड़ी खाद 10 कि.ग्रा. प्रति वर्ग मीटर की दर से मिलानी चाहिए। क्यारियों को तैयार करके 5 से 10 ग्राम फ्रयूराडान या थिमेट का प्रयोग करें। इसके साथ ही 5 से 10 ग्राम थीरम, कैप्टॉन या बाविस्टीन दवा कवकनाशी मिलाकर क्यारी को समतल करके बीज बोने के लिए तैयार कर लें।
इसके बाद क्यारी में 8 से 10 सें.मी. की दूरी पर 2 से 3 सें.मी. गहरी (नुकीली लकड़ी की मदद से)े कतारें बनायें। इन कतारों में बीज को उपचारित करने के बाद बुआई कर दें। अब हल्के हाथों से इन कतारों को मिट्टी से ठीक से ढक दें, इसके ऊपर किसी जूट की बोरी या घास आदि का पलवार बिछा कर ढक दें। अगर क्यारी में नमी कम है तो पलवार के ऊपर से हजारे द्वारा हल्की सिंचाई करें।
एक बार बीज अंकुरण के बाद पलवार को सायं के समय हटा दें और हल्की सिंचाई कर दें। सामान्य स्थिति में क्यारियों में पत्तागोभी का बीज 7 से 8 दिनों में अंकुरित हो जाता है। इस दौरान क्यारी में उगे हुए पौधों की देखभाल करते रहें। इस प्रकार 30 से 35 दिनों में पौधें खेत में रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं।

पौध रोपाई, रोपाई के लिए दूरी

रोपाई के लिए पौध तैयार होने पर पहले से तैयार खेत में 50 सें.मी. की दूरी पर कतारें बनाकर उसमें पौध से पौध की दूरी 50 सें.मी. पर पौधों की रोपाई सायं के समय करें। कम बढ़ने वाली किस्मों के लिए दूरी 45×45 सें.मी तथा अधिक बढ़ने वाली प्रजातियों के लिए 60×60 सें.मी. की दूरी रोपाई के लिए रखी जा सकती है।

सिंचाई

खेत में पत्तागोभी की पौध रोपाई करने के बाद तुरन्त हल्की सिंचाई करनी चाहिए। खराब पौधों के स्थान पर पुनः प्रतिरोपण एक सप्ताह के भीतर अवश्य ही कर देना चाहिए अन्यथा पैदावार में कमी आ जाती है। प्रतिरोपण के पश्चात भी तुरन्त सिंचाई कर दें।

खरपतवार नियंत्रण एवं अंतःसस्य क्रियाएं

पत्तागोभी में पौध रोपण से लेकर तैयार होने तक कई बार और कई प्रकार के खरपतवार उगते हैं। दो या तीन निराई-गुड़ाई से खरपतवार की रोकथाम हो जाती है।

पत्तागोभी के प्रमुख कीट एवं कीटों की रोकथाम

पत्तागोभी की तितली

पत्तागोभी में लगने वाले इस कीट की वयस्क तितलियां सफेद रंग की होती हैं। अंडे से निकलकर ये इल्लियां बड़े पौधों के शीर्ष के आस-पास वाले पत्तों की शिराओं को छोड़कर सभी भागों का खा जाती हैं, इसके कारण पौधे लगभग पूरी तरह से नष्ट हो जाते हैं।

रोकथाम

  1. फसल की बढ़वार की अवस्था में नीम के अर्क (एन.एस.के.ई.) के 5 प्रतिशत घोल का 2 से 3 बार छिड़काव करने पर इस कीटों के प्रकोप में कमी आ जाती है। छिड़काव के लिए दोपहर के बाद का समय चुनें।
  2. नियंत्रण हेतु उक्त उपाय करने के बाद भी अगर कीटों की संख्या अधिक हो तो स्पाइनोसैड (3 मि.ली./10 लीटर पानी) या इमामेक्टिन बेन्जोएट (3 ग्राम/10 लीटर पानी) या फिप्रोनिल (2 मि.ली./लीटर पानी) या क्लोरेन्ट्रेनिप्रोले (1 मि.ली./10 लीटर पानी) का प्रयोग करना चाहिए।

पत्तागोभी का अर्धकुंडलक कीट

पत्तागोभी में लगने वाले इस कीट का वयस्क पतंगा भूरा होता है। इस कीट की इल्लियां ही फसल में क्षति पहुंचाती हैं। ये बड़ी संख्या में पौधशाला व खेतों में दिखाई देती हैं। यह पत्तियों के हरे भाग को खा जाती हैं। जिसके कारण पत्तियों पर केवल शिराएं ही शेष रह जाती हैं।

रोकथाम

  1. फसल की बढ़वार की अवस्था में नीम के अर्क (एन.एस.के.ई.) के 5 प्रतिशत घोल का 2 से 3 बार छिड़काव करें। छिड़काव के लिए दोपहर के बाद का समय चुनें।
  2. नियंत्रण हेतु उक्त उपाय करने के बाद भी अगर कीटों की संख्या अधिक हो तो स्पाइनोसैड (3 मि.ली./10 लीटर पानी) या इमामेक्टिन बेन्जोएट (3 ग्राम/10 लीटर पानी) या फिप्रोनिल (2 मि.ली./लीटर पानी) या क्लोरेन्ट्रेनिप्रोले (1 मि.ली./10 लीटर पानी) का प्रयोग करना चाहिए।

पत्तागोभी का एफिड

एफिड पत्तागोभी का प्रमुख कीट है, इसे आम भाषा में चैंपा, माहूं व तेला के नाम से भी जाना जाता है। यह कीट प्रायः दिसंबर के अंत से मार्च के अंत तक सक्रिय रहता है। माहूं कीट के वयस्क व शिशु पौधों के विभिन्न भागों से रस चूसकर फसल को नुकसान पहुचाते हैं।

रोकथाम

  1. मेटासिस्टॉक्स 25 ई.सी., रोगोर 30 ई.सी. या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. की 1 मि.ली मात्रा प्रति लीटर पानी में या प्रति लीटर मात्रा को 600 से 800 लीटर पानी में घोलकर 15 दिनों के अंतराल पर दो बार छिड़काव करना चाहिए। अगर फसल में कीट के प्राकृतिक शत्रु जैसे लेडी बर्ड बीटल, सिरफिड आदि परजीवी पर्याप्त मात्रा में हों तो उक्त का छिड़काव नहीं करना चाहिए।

पत्तागोभी का तनाबेधक कीट

पत्तागोभी का तनाबेधक कीट वयस्क कीट हल्के पीले-भूरे रंग का एक पतंगा होता है। इस कीट की इल्लियां पत्तियों की शिराओं के साथ-साथ सुरंग बनाती देती हैं, जो सफेद झिल्लीदार के रूप दिखाई देने लगती हैं।
इन सुरंगों के अंदर कीट का मल भरा रहता है। यह इल्लियां पत्तियों के वृंतों व तनों में प्रवेश कर क्षति पहुंचाती हैं। छोटे पौधों में इस कीट की इल्लियां मुख्यतः पत्तियों व तनों में प्रवेश कर क्षति पहुंचाती हैं।

रोकथाम

  1. पत्तागोभी का तनाबेधक कीट के नियंत्रण के लिए 0.05 प्रतिशत मैलाथियान या 0.1 प्रतिशत कार्बोरिल का प्रयोग लाभदायक होता है।

हीरक पृष्ठ पतंगा

पत्तागोभी के इस कीट के छोटे डिंभक पत्तियों की निचली सतह पर रहते हैं व उनमें छोटे-छोटे छिद्र बना देते हैं। कीट के अधिक प्रकोप होने पर छोटे पौधे पूरी तरह पत्तीरहित होकर मर जाते हैं। यह बड़े पौधों के ऊपरी भागों में छिद्र बना देते हैं, जिनमें इनका मल भरा रहता है जो फसल को खराब करता है।

रोकथाम

  1. पत्तागोभी में इस कीट के नियंत्रण के लिए सरसों को जाल फसल के रूप में उगाना चाहिए। इसके लिए पत्तागोभी की प्रत्येक 25 पंक्ति की रोपाई के बाद दूसरी रोपाई के 15 दिन पूर्व सरसों की एक पंक्ति की बुआई करते हैं, फिर पत्तागोभी की दूसरी रोपाई पंक्ति में करते हैं।
  2. उक्त के अतिरिक्त बी.टी. 1 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर का छिड़काव करें।
  3. फसल में अत्यधिक प्रकोप होने पर मैलाथियान 50 ई.सी. के 500 मि.ली. को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करें।

पत्तागोभी के मुख्य रोग

मृदुरोमिल आसिता (डाउनी मिल्ड्यू)

पत्तागोभी यह रोग पौधशाला से फूल बनने तक कभी भी लग सकता है। रोग के लक्षणों के रूप में सूक्ष्म, पतले बाल जैसे सफेद कवक तन्तु पत्ती की सतह पर दिखते हैं। जहाँ पत्तियों की निचली सतह पर कवक तन्तु दिखते हैं वहीं पत्तियों की ऊपरी सतह पर भूरे नेक्रोटिक धब्बे बनते हैं। यह रोग के तीव्र हो जाने पर आपस में मिलकर बड़े हो जाते हैं।

रोकथाम

  1. पत्तागोभी में इस रोग की रोकथाम के लिए मैन्कोजेब कवकनाशी का 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर रोग की प्रारंभिक अवस्था में 6 से 8 दिनों के अंतराल में पत्तियों में छिड़काव करना चाहिए।
  2. रोग की अधिकता की दशा में रिडोमिल कवकनाशी का 2 ग्राम/लीटर पानी की दर से घोल बनाकर केवल एक बार छिड़काव करना चाहिए।

अल्टरनेरिया पर्णदाग

पत्तागोभी की फसल में अल्टरनेरिया पर्णदाग बाद की अवस्थाओं में निचली पत्तियों में लगता है। इस रोग में पत्तियों पर गोल भूरे धब्बे बनते हैं, जिसमें छल्लेदार रिंग स्पष्ट दिखायी देते हैं। नम मौसम में इन्हीं धब्बों पर काले बीजाणु बन जाते हैं और पत्तागोभी की ऊपरी पत्तियां भी संक्रमित हो जाती हैं।

रोकथाम

  1. पत्तागोभी में इस रोग की रोकथाम के लिए सायं के समय क्लोरोथेलोनिल कवकनाशी की 2 ग्राम/लीटर पानी की दर घोल के साथ 0.1 मि.ली. स्टीकर के साथ मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।
  2. अच्छे बीज के चुनाव के साथ ही फूल बधने के समय एक बार उक्त दवा या मैन्कोजेब 2.5 ग्राम लीटर की दर से छिड़काव करना भी लाभप्रद रहता है।

पौध का कमर तोड़

पत्तागोभी में यह रोग पौध में लगने वाला एक प्रमुख रोग है, जो भी सब्जियां पौध से उगाई जाती हैं, उन सब में यह पाया जाता है। इसका रोग का प्रकोप ठीक से प्रबंधित न होने वाली पौधशालाओं में अधिक होता है।
इस रोग के लक्षण पौधों पर दो तरह से दिखाई देते हैं। एक में पौधे जमीन से बाहर निकलने से पहले ही रोगग्रस्त हो जाते हैं और बीज अंकुरित होते ही मर जाते हैं। इससे पौधशाला में पौधों की संख्या में कमी आ जाती है।
वहीं दूसरी स्थिति में रोग का संक्रमण पौधे के तने पर होता है। इस दौरान तने में विगलन होने से पौधे भूमि की सतह पर लुढ़क कर मर जाते हैं।

रोकथाम

  1. पौधशाला की क्यारियों में बीज बुआई से 15 से 20 दिन पहले फार्मालिन के 1 भाग को 7 भाग पानी में मिलाकर शोधित करें तथा क्यारियों को पॉलीथीन की शीट से ढककर रखें। क्यारियों में बीज तभी बोयें जब मिट्टी से इस दवा का धुआं उठना बंद हो जाये।
  2. क्यारियों को मैन्कोजेब 25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी और कार्बेन्डाजिम 5 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी के घोल से, (बीज से पौध निकलने पर) रोग के लक्षण देखते ही छिड़काव करें।
    तना विगलन रोग
    इस रोग से प्रभावित पौधों पर हरियाली समाप्त हो जाती है और वे पीले पड़कर गिर जाते हैं। पौधे के तने पर गहरे भूरे रंग की सड़न शुरू हो जाती है और तना अंदर से खोखला हो जाता है। तने में कोयले की तरह के काले रंग की आधे से पौने इंच के आकार की टिकियां भर जाती हैं व फूल भी सड़ने लगते हैं।

रोकथाम

फसल तैयार होने तक 10 से 15 दिनों के अंतराल में प्रति हे. कार्बेन्डाजिम 50 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी और मैन्कोजेब 250 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी का छिड़काव करना चाहिए।

पत्तागोभी काला सड़न रोग

पत्तागोभी के इस रोग में रोगग्रस्त पौधों के पत्तों के किनारे पर अंग्रेजी के ट अक्षर के आकार के पीले धब्बे पड़ जाते हैं। एक समय बाद ये बढ़कर पत्तों के अधिकतर भाग को घेर लेते हैं।
प्रभावित पत्तों की शिराएं गहरे भूरे या काले रंग की हो जाती हैं। तापमान के बदलने से प्रभावित पौधे एक दम सूख जाते हैं।

रोकथाम

  1. 500 सेल्सियस पर 30 मिनट तक ऊष्णजल बीजोपचार या स्टै्रप्टोसाइक्लिन के 1 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी के घोल द्वारा 30 मिनट तक बीजोपचार करें।
  2. स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 1 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी एवं कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम प्रति लीटर के मिश्रण को 0.5 मि.ली. चिपकने वाले पदार्थ के साथ मिलाकर एक बार प्रयोग करें।
    पत्ता गोभी की खेती से सम्बन्धित यह जानकारी विभिन्न कृषि विशेषज्ञों के सुझावों एवं सहयोग से तैयार की गई है। किसान भाईयों से अनुरोध है कि जानकारी के प्रयोग से पूर्व अपने नजदीकी कृषि विशेषज्ञ की राय लें।

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