आयस्टर या ढिंगरी मशरूम की उत्पादन विधि | Oyster ya Dhingri Mushroom ki utpadan vidhi | Production method of Oyster (Dhingri) Mushroom
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युवा किसान दोस्तो नमस्कार!
आज के आलेख में हम आपको आयस्टर या ढिंगरी मशरूम की उत्पादन विधि बताऐंगे। जिसे पढ़ने के बाद आप बिना किसी समस्या के कम खर्च में ढिंगरी मशरूम का उत्पादन कर सकते हैं।
कोरोना महामारी के चलते अपने गाँव लैटे युवाओं के लिए आयस्टर या ढिंगरी मशरूम का उत्पादन काफी फायदेमंद और मुनाफा दिलाने वाला व्यवसाय साबित हो सकता है। इससे बनने वाले बाई प्रोडक्ट जैसे मशरूम का अचार व पाउडर आदि को पूरे भारत में बेचा जा सकता है।
दोस्तो ढिंगरी मशरूम को आयस्टर व सीपी मशरूम के नाम से भी जाना जाता है। मशरूम की यह प्रजाति प्लूरोटस स्पीसीज में आती हैं।
मौसम अथवा समय के अनुसार ढिंगरी मशरूम के उत्पादन के लिए अलग- अलग प्रजातियों को उगाया जाता है। उत्पादन समय की दृष्टि से इस अवधि को दो श्रेणियों शीतकालीन तथा ग्रीष्म कालीन में बाँटा जाता है।
आयस्टर या ढिंगरी मशरूम की शीतकालीन प्रजातियांः
शीतकालीन प्रजातियों में प्लू. आस्ट्रीएटस, प्लू. फ्लोरिडा, प्लू. इरिंगाई एवं प्लू. फासुलेटस हैं। ढिंगरी मशरूम की यह प्रतातियां जाड़ों में उगाने के लिए उपयुक्त होती हैं।
आयस्टर या ढिंगरी मशरूम की ग्रीष्म कालीन प्रजातियांः
ग्रीष्म कालीन प्रजातियों में प्लू. फ्लेबेलेटस, प्लूरोटस सजोर काजू एवं प्लू. सेपीडस हैं। ढिंगरी मशरूम की यह प्रतातियां ग्रीष्म काल अथवा गर्मी के मौसम में उगाने के लिए उपयुक्त होती हैं।
ढिंगरी मशरूम की खेती करने के लिए उपयुक्त समयः
ढिंगरी मशरूम के बेहतर उत्पादन की दृष्टि से फरवरी से अप्रैल एवं सितम्बर से नवम्बर (कम ऊँचाई वाले क्षेत्रों के लिए) उपयुक्त समय है। पहाड़ी क्षेत्रों के यह अवधि उक्त माहों से कुछ सप्ताह कम या अधिक हो सकती है।
आवश्यक तापमान व आर्द्रताः
मशरूम की इन प्रजातियों से बेहतर उत्पादप प्राप्त करने के लिए सही तापमान व आर्द्रता का होना अनिवार्य है। ऐसे में ढिंगरी मशरूम के बेहतर उत्पादन के लिए आवश्यक तापमान 10°C -30°C एवं आर्द्रता 70-85 % के बीच होनी चाहिए।
उत्पादन के लिए पोषाधार अथवा बेस मटिरियलः
ढिंगरी मशरूम के उत्पादन के लिए प्रायः कटा हुआ धान का पुवाल (4 से 5 से.मी.) अथवा गेंहू के भूसे का प्रयोग किया जाता है। भारत में इसकी उपलब्धता भी अमूमन आसान होती है।
लगभग 100 बैंग के लिए आवश्यक सामग्रीः
क्र.सं. | सामग्री का नाम | मात्रा | दर | लागत मूल्य (रू.) |
1- | गेहूं का भूसा या पुआल | 150 किलोग्राम | 8 रु./ किलोग्राम | 1200 |
2- | मशरुम का बीज/स्पान | 15 किलो ग्राम | 100 रु./ किलोग्राम | 1500 |
3- | फार्मलीन | 4 लीटर | 100 रु./ लीटर | 400 |
4- | कार्बेंडाजिम | 300 ग्राम | 80 रु./ 100 ग्राम | 240 |
5- | एल.डी.ई.पी. बैग्स 16X24 | 2 किलोग्राम | 200 रु./ किलोग्राम | 400 |
6- | नायलॉन की रस्सी | रस्सी 1 बंडल (800 ग्राम) | 200 रु./ बंडल | 200 |
7- | स्पेयर पंप | 1 पीस | 300 रु./ पीस | 300 |
8- | एग्जॉस्ट फैन | 1 पीस (12 इंच तक) | 1000 रु./ पीस | 1000 |
9- | हाईग्रोमीटर/थर्मामीटर | 1 पीस | 700 रु./ पीस | 700 |
10- | रबड़ बैंड | 100 ग्राम | 100 रु./ ग्राम | 100 |
11- | पानी की टंकी | 1 -क्षमता 1000 लीटर | 2400 रु./ पीस | 2400 |
कुल लागत | 8440 |
उक्त वस्तुओं का मूल्य स्थान के अनुसार कम या अधिक हो सकता है। आप अपनी आवश्यकता के अनुसार इनकी मात्रा ले सकते हैं।
आयस्टर मशरूम की खेती से सम्बन्धित वीडियो देखिए:
आयस्टर मशरूम की खेती की विधि Oyster ya dhingri mushroom ki utpadan vidhi:
आयस्टर या ढिंगरी मसरूम की खेती करना दूसरी प्रजाति की मशरूम उत्पादन से आसान, कम समय एवं कम खर्च पर की जा सकती है। इसके लिए बहुत अधिक संसाधनों की जरूरत भी नहीं होती है।
आयस्टर मशरूम की खेती के लिए भूसे को उपचारित करनाः
पानी की टंकी में प्रति 100 लीटर साफ पानी में 7 से 10 ग्राम कार्बेंडाजिम (बावस्टिन) तथा 100 से 150 मिली. फार्मलीन मिलाऐं।
अब भूसे या पुवाल को बोरियों में भरकर ऊपर बतायें गये अनुसार तैयार धोल में 17 से 18 घंटा तक के लिए भिगो दें।
इसके बाद भूसे की बोरियों को उक्त घोल में से निकाल कर किसी साफ व सूखे पक्के फर्स पर निथारने के लिए रख दीजिए।
जब बोरियो में से पानी निथर जाय तो बोरी का मुह खोलकर भूसे को हाथ से उठायें तथा उसे निचोड़ें। यह निचाड़ने पर पानी नहीं टपक रहा है तो समझिये यह मशरूम की बीजाई के लिए तैयार है।
इस प्रकार भिगोने के बाद आपको प्रति किलोग्राम सूखे भूसे से लगभग 4 किलोग्राम भिगोया भूसा प्राप्त होगा। इसे पोषाधार भी कहा जाता है।
बीजाई या स्पान मिलाने कि विधिः
बीजाई के लिए उक्त प्रकार से उपचारित तैयार भूसे में भूसे के भार का 2 प्रतिशत स्पान अर्थात मशरूम का बीज भली प्रकार मिला लें।
स्पान मिले भूसे की 4 से 6 किलोग्राम मात्रा को पॉलीथीन के बैंगों में भरें। भरे हुये बैंगों के मुह को कसकर मोड़ते हुये रबर बैंड की सहायता से बंद कर दें।
उक्त प्रकार से भरे गये पॉलीथीन बैंगों में चारों ओर से आधा या एक से.मी. व्यास के 8 से 10 छेद बनाकर बैंगों को 15 से 20 से.मी. के फासले में कमरे अर्थात फसल कक्ष के अंदर रैंकों में रख दें।
यदि रैक उपलब्ध न हो या रैंक की लागत से बचना चाहते हैं तो, इसके लिए आप लकड़ी की बल्ली अथवा बाँस के डंडों पर नॉयलान की रसियों की मदद से एक के नीचे एक बैंगों की श्रृंखला बनाकर भी बैंगों को लटका सकते हैं।
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फसल कक्ष का प्रबंधनः
ध्यान रहे इस प्रकार से बैंग लटकाते समय दो कतारों के बीच लगभग 1 से 1.5 फीट का फासला रहना चाहिए, ताकि फसल देखरेख एवं मशरूम तुड़ाई के समय आप आसानी से कमरे में काम कर सकें।
इसके बाद कमरे में नमी मापने के लिए हाईग्रोमीटर तथा तापमान मापने के लिए थर्मामीटर लगा दें। यदि कमरे का तापमान 25°C से ऊपर हो तो कमरे की दीवार तथा फर्स में पानी का छिड़काव कर तापमान को 25°C के आसपास ही रखें।
आर्द्रता तथा तापमान नियंत्रण के लिए आवश्यकतानुसार समय-समय पर कमरे की दीवारों तथा फर्स के साथ ही बैंगों में भी स्प्रैयर की सहायता से पानी का छिड़काऊ करना चाहिए।
इस प्रकार लगभग 15 से 20 दिनों में बैंगों में भरे भूसे में मशरूम का कवक जाल पूर्ण रूप से फैल जायेगा। इसके 3 से 4 दिनों के बाद बैंगों में किये गये छेदों में से मशरूम निकना प्रारंभ हो जायेगी।
यदि आपने बैंगों को रैकों में रखा है तो आप बैंगों को काट भी सकते हैं और यदि आपने बैंग लटका कर रखे हैं तो आप उनमें और छेद भी कर सकते हैं।
मशरूम ऊगना प्रारंभ होने के बाद बैगों में दिन के दो बार हल्के पानी का छिड़काऊ करना चाहिए।
फसल की तुड़ाईः
इस प्रकार 3 से 4 दिन के बाद मशरूम की आरंभिक अवस्था दिखने लगेगी, जो आगामी 2 से 3 दिन में बढ़कर तोड़ने लायक हो जायेगी।
इस प्रकार तैयार मशरूम को अंगूठे एवं उंगलियों की सहायता से ऐंठ कर (घुमाकर) तोड़ लें। मशरूम को तोड़ने के उसके निचले भाग में लगे कवकजाल तथा भूखे लगे हिस्से का काटकर अलग कर दें।
एक प्रकार भरे गये बैंगों से मशरूम की तीन तुड़ाई तक प्राप्त की जा सकती हैं। इसके लिए नियमित देखरेख अनिवार्य है। दूसरी तुड़ाई पहली तुड़ाई के लगभग 10 दिन बाद तथा तीसरी तुड़ाई दूसरी के 6 दिन बाद कर लेनी चाहिए।
प्रति किलोग्राम भूसे या पुआली से हर तुड़ाई में औसत लगभग 500 से 600 ग्राम तक ताजा मशरूम प्राप्त होती है। जिसे सुविधानुसार पैंक कर बाजार में बेचा जा सकता है।
मशरूम उत्पादन के दौरान इन बातों का ध्यान रखेंः
- भूसे अथवा पुआल को उपचारित करते समय बच्चों को टंकी व उसके पानी से दूर रखें।
- भूसे अथवा पुआल को उपचारित करने के बाद तथा फसल प्रबंधन के बाद अपने हाथों को साबुन से धोकर साफ करें।
- मशरूम उत्पादन कक्ष में उत्पादन के दौरान काफी मात्रा में कार्बन डाई आक्साईड गैस का उत्सर्जन होता है, इसे बाहर निकालने के लिए एग्जॉस्ट फैन का प्रयोग करना चाहिए।
- फसल कक्ष में तापमान एवं आर्द्रता की नियमित जाँच करते रहें साथ ही फसल कक्ष की नियमित सफाई भी अनिवार्य रूप से करते रहें।
- फसल में संभावित रोगों एवं संक्रमण से बचाव के लिए फसल कक्ष में फसल प्रारंभ करने से पूर्व कार्बेंडाजिम (बावस्टिन) तथा फार्मलीन के घोल से फसल कक्ष को उपचारित करें।
- फसल उत्पादन के दौरान किसी भी प्रकार की समस्या आने पर विशेषज्ञों से सलाह अवश्य लें।
तो दोस्तों आपको आयस्टर या ढिंगरी मशरूम की उत्पादन विधि के बारे में दी गई यह जानकारी कैसी लगी हमें जरूर बताईये। मशरूम उत्पादन की अगली कढ़ी में हम आपको पुआल मशरूम अथवा फुटु मशरूम (वालवेरियल्ला स्पीसीज) की व्यवसायिक खेती की विधि पर पूर्ण जानकारी प्रदान करेंगे।
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