सफल सब्जी उत्पादन के लिए जरूरी है पौधशाला (नर्सरी) प्रबंधन

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दोस्तों नमस्कार!

सब्जी उत्पादन कार्य किसानों का सबसे पसंदीदा कार्य है, क्योंकि इससे उन्हें नकद आमदनी होती है। लेकिन अगर इस कार्य को ठीक से नहीं किया गया तो किसानों को लाभ के स्थान में हानि भी उठानी पढ़ती है।

सब्जी उत्पादन में पौधशाला (नर्सरी) एक ऐसा स्थान है, जहां पर सब्जियों के पौधें को उगाने और उसकी देखभाल का काम किया जाता है। सब्जी उत्पादन की सफलता बहुत हद तक पौधशाला (नर्सरी) में तैयार पौधों पर निर्भर करती है। यही वह स्थान है जहाँ पौधों की प्रारंभिक देखरेख होती है।

खेती किसानी के किसी भी कार्य की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि हम किस तरह के बीज की बुआई कर रहे हैं। इस लिए एक अच्छी तरह से प्रबंधित नर्सरी में उगाये गये स्वस्थ पौधे ही किसान को प्राप्त होने वाली उपज और लाभ को तय करते हैं।

सब्जी उत्पादन के लिए नर्सरी बनाने में उच्च गुणवत्ता युक्त, अच्छी किस्म के बीजों की भी आवश्यकता होती है। इस लेख में हम आपको कुछ छोटी-छोटी मगर काम की बातें बता रहें हैं, जो आपको अपनी सब्जी फसल की नर्सरी बनाने में आसानी प्रदान करेंगी।

पौधशाला (नर्सरी) प्रबंधन के यह तरीके पहाड़ी व मैदानी क्षेत्रों, ठंडी एवं गरम जलवायु सभी प्रकार के निवासी किसानों के लिए समान रूप से उपयोगी हैं।

आप ऊपर दिये गये टेबल ऑफ कंटेंट में से सीधे अपनी जरूरत के बिन्दु को भी पढ़ सकते हैं-

सब्जी की पौधशाला (नर्सरी) क्या है जानिए

सब्जी की पौधशाला वह स्थान है, जहाँ सब्जियों की पौधों को उचित देखभाल के साथ स्थायी रोपण के लिए तैयार होने तक रखा जाता है।

कुछ सब्जियों के पौधों को अपनी शुरुआती विकास अवधि के दौरान विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है। इनके बीज बहुत छोटे आकार के होते हैं, जिसके कारण इन्हें सीधे खेतों में नहीं बोया जा सकता है।

टमाटर, बगैंन, मिच,र् फूलगोभी, पत्तागोभी, गांठगोभी, शिमला मिर्च आदि ऐसी ही सब्जियां है। ऐसी सब्जियों की बेहतर देखभाल के लिए इनकी नर्सरी तैयार करना जरूरी होता है।

नर्सरी में बीज की बुआई के 25 से 30 दिनों के बाद खेतों को तैयार कर नर्सरी में तैयार पौधों की रोपाई कर दी जाती है।

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पौधशाला के लिए निम्न बिन्दुओं के अनुसार सही स्थान का चयन करें

पौधशाला के लिए निम्न बिन्दुओं के अनुसार सही स्थान का चयन करें

आपको अपनी पौधशाला के लिए स्थान का चयन करते समय निम्न महत्वपूर्ण बिंदुओं का ध्यान रखना चाहिए-

  1. चयनित स्थान की मिट्टी सर्वोत्तम किस्म अथार्त दोमट या रेतीली दोमट हो।
  2. मिट्टी कार्बनिक पदार्थ से युक्त होनी चाहिए।
  3. चयनित स्थान पर जल निकासी की पूर्ण व्यवस्था हो।
  4. मिट्टी का पी-एच उदासीन अर्थात लगभग 7.0 हो।
  5. चयनित स्थान में सर्दी तथा गर्मी समान्य हो।
  6. सिंचाई हेतु पर्याप्त मात्रा में पानी की उपलब्धता हो।
  7. दिन के समय उचित समय तक धूप रहनी चाहिए।
  8. पौधशाला तक आवागमन के उचित साधन होने चाहिए।
  9. वर्षा ऋतु में वाहन आसानी से आ जा सकें।
  10. पौधशाला में पालतू या जंगली जानवरों से सुरक्षा के इंतजाम होने चाहिए।

पौधशाला के लिए मिट्टी की तैयारी

  • पौधशाला में मिट्टी को तैयार करने के लिए सबसे पहले भूमि की जुताई कर मिट्टी को अच्छी तरह भुरभुरी बना लेना चाहिए।
  • इसके बाद खेत से बड़े ढेले व पत्थर आदि निकालकर भूमि को समतल कर लेना चाहिए।
  • एक हैक्टर क्षेत्रफल पर सब्जी लगाने के लिए लगभग 50 वर्गमीटर क्षेत्रफल पौधशाला के लिए पर्याप्त होता है।

पौधशाला में बीज बुआई से पूर्व मिट्टी का उपचार

स्वस्थ और अच्छे पौध प्राप्त करने के लिए, स्वस्थ अंकुरों को बढ़ाने के लिए, रोगजनक और कीटमुक्त भूमि के लिए मृदा उपचार करना अनिवार्य होता है। आप निम्न विधियों द्वारा अपनी पौधशाला की मिट्टी को उपचारित कर सकते हैं-

मृदा सौरीकरण विधि से मिट्टी का उपचार

मई-जून के महिनों में जब तापमान 45 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है, तब मृदा को पानी से तर कर 200 गेज की सफेद पॉलीथीन से 5 से 6 सप्ताह के लिए मिट्टी को ढक दिया जाता है।

किनारों के चारों तरफ मिट्टी से दबा बवा कर बैडों को ढक दिया जाता है। इस प्रकार 5 से 6 सप्ताह बाद पॉलीथीन शीट को हटा देते हैं। इस प्रक्रिया से मिट्टी में पाये जाने वाले हानिकारक जीवाणु आदि नष्ट हो जाते हैं और मिट्टी उपचारित हो जाती है।

फॉर्मालिन द्वारा मिट्टी का उपचार

फॉर्मालिन द्वारा मिट्टी का उपचार करने की प्रक्रिया को बीज बोने के 15 से 20 दिनों पहले किया जाता है। इसके लिए 1.5 से 2.0 प्रतिशत फॉर्मालिन का घोल बनाकर 15 से 20 सें.मी. की गहराई तक मिट्टी में ड्रेंचिंग करते हैं।

ठस विधि में 4 से 5 लीटर पानी प्रति वर्गमीटर के हिसाब से लगता है। इसके बाद 200 गेज की पॉलीथीन शीट से ड्रेंचिंग किये गये क्षेत्र को ढककर किनारे को मिट्टी से दबा देते हैं। लगभग 15 दिनों बाद पॉलीथीन को हटा दिया जाता है।

फफूदीनाशकों का प्रयोग करें

आमतौर पर कैप्टॉन या थीरम मृदाजनित रोग जनकों के लिए उपयोग किया जाता है। आप 5 से 6 ग्राम फफूदीनाशक का प्रयोग प्रति वर्गमीटर नर्सरी क्षेत्रफल के अनुसार कर सकते हैं।

पौधशाला की मिट्टी में कीट नियंत्रण करें

पौधशाला में कीट नियंत्रण के लिए कीटनाशक क्लोरपायरीफॉस को 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर मिट्टी में ड्रेंचिंग की जाती है। इससे दीमक एवं अन्य कीट व उनके अंडे, जो मिट्टी में मौजूद होते हैं वह सब नष्ट हो जाते हैं।

पौधशाला के लिए क्यारियां ऐसे बनायें

पौधशाला में क्यारियां मौसम के अनुसार बनाई जाती हैं। वर्षा ऋतु में जमीन से 15 से 20 सें.मी. ऊंची उठी क्यारियां बनानी चाहिए। किन्तु सर्दी तथा गर्मी के मौसम में समतल क्यारियां तैयार करना उचित रहता है।

पौधशाला में क्यारी का आकार 3 से 5 मीटर लंबाई वाला, 1 मीटर चौड़ा व जमीन से 15 सें.मी. ऊंचा उठा होना चाहिए।

पौधशाला में क्यारियों की चौड़ाई को एक मीटर तक सीमित रखा जाता है, ताकि निराई-गुड़ाई सुविधाजनक रूप से की जा सके। दो क्यारियों के बीच 50 से 60 सें.मी. का स्थान खाली छोड़ा जाता है, ताकि आने-जाने में सुविधा के साथ ही जल की निकासी भी आसानी से हो सके।

पौधशाला में क्यारियों को पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर तैयार किया जाना चाहिए। इसके बाद बीच की पंक्तियों को उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर बनाना उचित रहता है।

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पौधशाला में बीज बुआई की विधियां

पौधशाला में बीज बुआई के लिए आमतौर पर दो विधियों का प्रयोग किया जाता है-

पौधशाला में बीज बुआई की छिटकवा विधि

पौधशाला में बीज बुआई की इस विधि में तैयार क्यारियों में बीज को छिटक बोया जाता है। इसके बाद उसमें अच्छी तरह सड़ी हुई भुरभुरी गोबर की खाद डाल कर ढक दिया जाता है।

पौधशाला में बीज बुआई की छिटकवा विधि से होने वाली हानि

  1. बीज बुआई की इस विधि में क्यारियों में बीज का असमान वितरण होता है।
  2. पौधों की वृद्धि एवं विकास की गति धीमी होता है।
  3. पौधे कमजोर रह जाते हैं।
  4. कई बार नर्सरी इतनी सघन हो जाती है, कि पौधों का विकास प्रभावित हो जाता है।
  5. पौधशाला में डेम्पिंग ऑफ रोग फैलने की आशंका बढ़ जाती है।

पौधशाला में बीज बुआई की कतार विधि

पौधशाला में बीज बुआई की इस विधि में क्यारियों की चौड़ाई के समानांतर कतारें यानि लाईनें बनायी जाती हैं। दो कतारों के बीच की दूरी लगभग 5 से 10 सें.मी. रखी जाती है।

बीज की बुआई 0.5 से 1.0 सें.मी. गहरी की जाती है। उसके बाद बीजों को भुरभुरी मिट्टी और अच्छी तरह सड़ी गोबर खाद के मिश्रण से ढककर हल्की सिंचाई की जाती है।

सब्जियों की पौध तैयार करते समय बीज की मात्रा का निर्धारण

क्र.सं.फसल/ बीज का नामबीज की मात्रा ग्राम/ हैक्टर क्षेत्र में रोपाई के लिए
1.टमाटर (संकर)500-600
2.टमाटर (मुक्त परागित)500-700
3.बैंगन400-500
4.मिर्च1000-1500
5.शिमला मिर्च250-300
6.पत्तागोभी
एवं पफूलगोभी
500-600
7.प्याज10-12 कि.ग्रा.
8.करेला, चिरचिटा, , तरबूज, खीरा एवं शलजम2-3 कि.ग्रा.
9.कद्दू2-3 कि.ग्रा.

पौधशाना में पलवार का प्रयोग

पौधशाला में बीज के अच्छे अंकुरण तथा मृदा की नमी बनाये रखने के लिए गर्म मौसम में पत्तियों, धान के पुआल या गीली घास की परत बिछाकर क्यारियों को ढकने की प्रक्रिया को पलवार कहा जाता है।

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पौधशाला में पलवार के फायदे

  • बीज के अंकुरण के लिए मृदा की नमी और तापमान बनाये रखने में मदद मिलती है।
  • खरपतवारों की अनियंत्रित वृद्धि को रोकने में सहायक होता है।
  • पौधशाला को सीधे पड़ने वाली धूप और बारिश से बचाता है।
  • अंकुरण से पूर्व पक्षियों द्वारा होने वाली क्षति से बचाता है।

बीज अंकुरण के बाद पलवार को हटा दें

पलवार से ढकी क्यारियों से पलवार हटाने के लिए कुछ सावधानी की जरूरत होती है। बुआई के तीन दिन बाद पौधशाला में क्यारियों का निरीक्षण किया जाता है।

जब जमीन में सफेद धागे जैसी संरचना ऊपर दिखाई दे, तब पलवार को सावधानी पूर्वक हटा दीजिए ताकि ऊपर निकलते अंकुरों को कोई नुकसान न हो।

पौधशाला में आवश्यकतानुसार सिंचाई करें

  • जब तक पौधशाला में बोये गये बीज अंकुरित नहीं हो जाते तब तक नर्सरी की क्यारियों में हजारा की सहायता से हल्की सिंचाई करनी चाहिए।
  • सिंचाई की आवश्यकता मौसम पर निभर्र करती है। बारिश के दिनों में सिंचाई की आवश्यकता बहुत कम या नहीं के बराबर होती है।

पौधशाला में खरपतवारों का नियंत्रण जरूर करें

अच्छे स्वस्थ पौधे प्राप्त करने के लिए पौधशाला यानि नर्सरी में समय-समय पर निराई करना बहुत जरूरी होता है। इसके अभाव में पौधों का विकास एवं स्वास्थ्य दोनों ही प्रभावित होते हैं।

यदि पौधशाला की क्यारियों में खरपतवार होने लगें तो उन्हें बिना देरी के हाथ से या किसी कुदाल या खुरपी की मदद से समय समय पर हटाते रहें।

पौध संरक्षण के लिए इन महत्वपूर्ण बातों को याद रखिऐगा

पौधशाला से स्वस्थ पौध प्राप्त करने के लिए कीटों और रोगों से पौधशाला की सुरक्षा करना आवश्यक है।

डेम्पिंग ऑफ, लीफ कर्ल, लीफ ब्लाइट आदि रोगों तथा लीफ माइनर जैसे कीट आपकी पौधशाला को बरबाद कर सकते हैं।

इन सबसे सुरक्षा एवं नियंत्रण के लिए समय-समय पर पौधशाला की देखभाल जरूरी है।

पौधशाला के संरक्षण हेतु इन उपाय को अपनायें

  1. पौधशाना की क्यारियों की मिट्टी को फफूदीनाशक से उपचारित करें।
  2. मृदा सौरीकरण पद्धति को अपनायें।
  3. बीज को हमेशा उपचारित कर बुआई करें।
  4. बीज उपचार के लिए काबेन्डाजिम 2.5 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर प्रयोग करें

रोपाई के लिए पौध का चयन निम्न प्रकार करें

बीज बोने के लगभग 25 से 30 दिनों बाद पौध रोपाई के लिए तैयार हो जाती है।
ध्यान रखें-

  • रोपाई में प्रयुक्त पौध स्वस्थ व मजबूत होने चाहिए।
  • पौधों में जड़ प्रणाली पूर्ण रूप से विकसित हो।
  • पौधे कीट-पतंगे व रोगों से मुक्त होने चाहिए।

क्यारियों से पौधों को उखाड़ने से पूर्व यह कार्य करें

क्यारियों से पौधों को उखाड़ने से पूर्व क्यारियों में हल्की सिंचाई करके पौधों को उखाड़ना ठीक रहता है। इससे पौधों की जड़ टूटने का खतरा भी कम हो जाता है। रोपाई के लिए पौधों को सुबह या शाम के समय ही उखाड़ना उचित रहता है।

पौधों को उखाड़ने के बाद जितनी जल्दी हो खेत में रोपाई कर लेनी चाहिए। उखाड़े गये पौधों की जड़ों को ढककर किसी छायादार स्थान में ही रखें।

प्रोट्रे के स्तेमाल से नर्सरी तैयार करना

वर्तमान समय में प्रोट्रे के स्तेमाल से नर्सरी तैयार करने का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है। इस विधि द्वारा सब्जियों की पौध तैयार करने के लिए प्लास्टिक की खानेदार ट्रे का प्रयोग किया जाता है।

प्रोट्रे के खाने शंकु के आकार के होते हैं, जिसमें पौधों की जड़ों का समुचित रूप से विकास होता है। प्रोट्रे के खानों में नीचे तली में छेद होता है, जो कि इसमें जल निकासी का काम करता है।

इस विधि से टमाटर, बैंगन, फूलगोभी, पत्तागोभी, मिर्च, शिमला मिर्च आदि फसलों की पौध तैयार की जा सकती है।

प्रोट्रे विधि में पौध को मिट्टी, गोबर की खाद व रेत के मिश्रण को 2ः1ः1 अनुपात में अथवा मृदारहित माध्यम (सॉयल लैस मीडिया) में उगाया जाता है।

मृदारहित माध्यम कोकोपीट, वर्मीकम्पोस्ट तथा रेत को 2ः1ः1 के अनुपात में मिलाकर तैयार किया जाता है। कोकोपीट में जल धारण करने की अदभुत क्षमता होती है, जिससे यह बहुत अधिक मात्रा में जल धारण कर सकता है।

प्रोट्रे में इसका उपयोग करने पर मिट्टी की जरूरत नहीं रहती है। लगभग 5 कि.ग्रा. कोकोपीट को 50 लीटर पानी में 10 ये 12 घंटे तक डुबोकर रखा जाता है। इसके बाद पानी निथार लेते हैं और किसी साफ फर्श पर फैला देते हैं।

उक्त के बाद इसमें 2.5 कि.ग्रा. वर्मीकम्पोस्ट व 2.5 कि.ग्रा. रेत मिलाकर मिश्रण तैयार कर लेते हैं। इतना मिश्रण 20 प्रोट्रे जिसमें कि 20 खाने बने होते हैं, के लिए पर्याप्त होता है।

प्रोट्रे के खानों में मिश्रण को इस प्रकार से भरें

प्रोट्रे के खानों में जल निकास के लिए नीचे छेद होता है, जिसमें कंकर या खपरैल के टुकड़े को रखना चाहिए ताकि मिश्रण में पानी देने डालते वक्त वह बहे नहीं।

इसके बाद तैयार मिश्रण को प्रोट्रे के खानों में भरना चाहिए। उसमें उंगली से छोटे- छोटे गड्ढे बनाकर प्रत्येक गड्ढे में एक-एक बीज बोना चाहिए। बीज डालने के बाद इसी मिश्रण की पतली परत से बीजों को ढक दीजिए ताकि बीज को अंकुरण के समय उचित नमी मिलती रहे।

बुआई से पूर्व बीजों को कार्बेंडाजिम (2.5 ग्राम दवा प्रति कि.ग्रा.) की दर से बीज को दवा से उपचारित कर लेना अच्छा रहता है। बीज बुआई के बाद प्रोट्रे में सिंचाई जरूर करें। गर्मी के दिनों में रोजाना दो बार व सर्दी के दिनों में एक बार सिंचाई अवश्य करनी चाहिए।

प्रोट्रे विधि से पौध तैयार करने के लाभ

  • मृदाजनित रोगों से मुक्ति मिलती है।
  • विषाणु व रोगरहित पौध तैयार किये जा सकते हैं।
  • बेमौसमी पौध तैयार करना संभव होता है।
  • बीज का अंकुरण अच्छा होने के साथ ही पौधों की मृत्युदर कम होती है।
  • सीतित क्षेत्र में अधिक पौधे तैयार किये जा सकते हैं।
  • बीज की मात्रा कम लगती है।
  • पौध को ट्रे सहित दूर स्थानों तक ले जाना आसान होता है।
  • वह सब्जियां जिनकी परम्परागत विधि से पौध तैयार करना संभव नहीं होता जैसे-बेल वाली सब्जियां, राइजोम वाली फसल आदि के लिए यह विधि काफी उपयोग है।
  • पौध की बढ़वार एक समान होती है।

पौधशाना प्रबंधन के लाभ

  1. नर्सरी पौध के अंकुरण एवं विकास के लिए अनुकूल स्थिति प्रदान करती है।
  2. नर्सरी छोटे क्षेत्रा में होती है अतः युवा पौधों की रोगजनक संक्रमण, कीटों और खरपतवारों से बेहतर देखभाल संभव है।
  3. जमीन और श्रम की बचत होती है, क्योंकि एक महीने बाद मुख्य खेतों में रोपण किया जाता है। इस प्रकार अधिक पफसलचक्रण को अपनाया जा सकता है।
  4. मुख्य खेत की तैयारी के लिए अधिक समय मिलता है, क्योंकि नर्सरी अलग से लगाई जाती है।
  5. सब्जियों के बीज विशेषकर संकर बीज बहुत महंगे होते हैं। इसकी हम नर्सरी में बुआई करके बीज का खर्च कम कर सकते हैं।

तो दोस्तों आपको “सफल सब्जी उत्पादन के लिए जरूरी पौधशाला (नर्सरी) प्रबंधन”  के बारे में दी गयी यह जानकारी कैसी लगी हमें कमेंट बॉक्स में लिखकर जरूर बताईये।

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